इशा किरन मैं तुमसे मुहब्बत करता हूं, तुम मेरी बात का यकीन क्यों नहीं करती । मुईज कमाल ने उसे बाजू से पकड़ा और अपनी तरफ खींचते हुए पूछा ।
“डोंट टच मी, मुईज़ कमाल तुम मेरे लिए आसमान से तारे भी तोड़ कर ले आओगे न तब भी मैं तुम्हारी बात का यकीन नहीं करूंगी ।”
वह खुद को उसकी गिरफ्त से छुड़ाते हुए बोली । “इसलिए.....इसलिए ना कि तुम उस मिडिल क्लास असफंद यार से मुहब्बत करती हो ।”
मुईज़ ने चुभते हुए लहजे में कहा । “मैं किसी से मुहब्बत करूं या न करूं, मेरी लाइफ है, तुम्हें इसके बारे में पूछने का कोई हक नहीं है ।” वह गुर्राते हुए बोली ।
देखो इशा! मेरी बात समझने की कोशिश करो, जिन्दगी गुज़ारने के लिए सिर्फ मुहब्बत ही काफी नहीं होती और भी बहुत कुछ होता है ।
वह सब कुछ असफंद यार के पास नहीं है। वह टियूशन पढ़ा पढ़ा कर यूनीवर्सिटी के खर्चे पूरे करता है । वह तुम्हारे खर्चे कैसे बर्दाश्त करेगा ।
तुम ऐशोइ सुकून की आदी हो, तुम मिडिल क्लास के लोगों के माहौल में नहीं रह सकती, मेरे पास दुनिया जहां की, न सिर्फ हर चीज है, बल्कि मैं तुमसे मुहब्बत भी करता हूं।
“मुईज़ कमाल! तुम अपना यह लेक्चर किसी और को सुनाओ, मैं बात में आने वालों में से नहीं हूं। मैंने असफंद यार के अच्छे नेचर, उसकी अच्छी पर्सनाल्टी और उसके अच्छे
केरेक्टर से मुहब्बत की है उसके स्टेटस या फिर उसकी दौलत देख कर नहीं और मुहब्बत इन चीजों की मोहताज नहीं होती आईन्दा मुझे समझाने की कोशिश मत करना, वर्ना अच्छा नहीं होगा।"
वह उसे ख़बरदार करती हुई वहां से चली आई। मुईज़ कमाल ने जमीन पर पांव से जोर से ठोकर मारी, फिर पार्किंग की तरफ आ गया।
क्लासेज छोड़ कर वह गाडी में बैठ कर सड़क पर कुछ देर इधर उधर फिरता रहा फिर थक हार कर घर चला गया।
“इशा कभी कभी मुझे तुम्हारा साथ एक ख्वाब लगता है ऐसा ख्वाब जिसकी ताबीर के बारे में मैं कुछ नहीं जानता ।” असफंद यार ने पानी में कंकर उछालते हुए कहा।
“असफंद तुम ख्याली दुनिया से बाहर आकर हकीकत की दुनिया में आंख खोलो तुम्हारा मेरा साथ ख्वाब नहीं हकीकत है, मैं तुमसे इतना प्यार करती हूं कि तुम्हारे लिए वह सभी आराम छोड सकती हूं ।
जिन चीजों का लालच देकर मुईज़ कमाल और मेरे घर वाले मुझे तुम से दूर करने की कोशिशों में लगे हैं। वह लोग कभी नहीं समझ सकते कि मुहब्बत इन चीज़ो की मोहताज नहीं होती ।”
वह समझाते हुई बोली फिर असफंद यार की तरफ़ देखा जो खामोशी से सामने पानी में फेंके हुए पत्थर से पैदा होने वाली लहरों को बहुत गौर से देख रहा था । “ओ....ह...हो.... हम क्या बोरिंग टापिक लेकर बैठ गए....चलो केन्टीन चलते हैं ।"
इशा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा । वह चुपचाप उसके साथ चलने लगा। यूं सलीके से याद आते होजैसे बारिश हो वक्फे वक्फे से मुईज़ कमाल की आवाज पर दोनों ने मुड़ कर देखा।
“यह कहां से आ गया? ” इशा ने बुरा सा मुंह बनाया । “मैं तुम्हारी जिन्दगी में हर जगह नजर आना चाहता हू । ” वह उनके सामने आकर मुस्कुराते हुए बोला ।
“मुईज़ कमाल तुम अपनी हद में रहा करो। “असफंद ने दांत पीसत हुए कहा । "चलो इसके मुँह मत लगो ।”
इशा उसे धकेलते हुए वहां से ले गई। वह नहीं चाहती थी कि यूनिवर्सिटी में उनका तमाशा बने।
“तो फिर क्या सोचा तुमने?” मम्मी ने डिनर के वक्त इशा से पूछा। “किस बारे में मम्मी!” वह लापरवाही से बोली ।
“वही मुईज़ कमाल के प्रोप्रोजल के बारे में” उन्होंने कुछ सख्त लहजे में कहा । “प्लीज मम्मी! इस टापिक को यहीं खत्म कर दें, मैंने पहले भी आपसे कहा था आप क्यों इस बात को रोजाना दोहराती हैं।”
वह उकताए हुए लहजे में बोली । “बैटा! आप रिलेक्स होकर खाना खाएं, हम फिर कभी बात कर लेंगे।” डैडी ने बहुत नर्म लहजे में कहा ।
“आपने ही इसे बहुत सर पर चढ़ा रखा है, इकलौती होने का यह मतलब नहीं है कि यह असफंद यार जैसे मिडिल क्लास का हाथ थाम ले ।”
वह गुस्से से बोली । ''डैडी! आप ही इस टापिक को लेकर बैठें, सुकून से बात करें या फिर जगड़े, मैं जा रही हूं, मुझे खाना नहीं खाना ।” वह उठ कर चली गई।
महमूद अहमद और सितारा बेगम ने दुख से अपनी लाडली बेटी की तरफ देखा, जो इतनी जिद्दी थी कि जिस बात या काम के पीछे पड़ती, वह करके ही छोड़ती थी। फिर उन दोनों ने भी खाना नहीं खाया।
“असफंद! तुम गांव कब जा रहे हो?” इशा के लहज़े में ऐसा कुछ था कि वह चौंक सा गया। “क्या बात है इशा तुम कुछ परीशान सी लग रही हो?”
असफंद! मुईज़ कमाल ने जब से प्रोपोज़ल भेजा है, मम्मी डैडी मुझसे रोज पूछते हैं, मैं हजार बार मना कर चुकी हू लेकिन वह कहते हैं कि मुईुज कमाल न सिर्फ हमारी क्लास का है, बल्कि उसके डैडी मेरे डैडी के गहरे दोस्त भी हैं, इसलिए मुझे हां कह देना चाहिए ।
इसलिए मैं चाहती हूं की तुम गाव जाकर अपने मां बाप और बहनों को ले आओ ।” इशा की बात पर वह और परीशान हो गया, लेकिन मुस्कुरा कर बोला।
“तुम फिक्र मत करो मैं इसी हफ्ते जाऊंगा और उन्हें ले आऊंगा, लेकिन तुम्हारे घर वाले?” “असफंद वह मेरी जिम्मेदारी है तुम बस उनको ले आओ।”
उसने मुस्कुरा कर उसकी बात काटी। “ओ.के. ठीक है।” वह कुछ मुतमइन सा हो गया, क्योंकि अभी घर जाकर अम्मा को समझाना था, वह मुम्बई इसलिए आया था कि पढ़ कर अच्छी जाब हासिल करेगा और दोनों बहनो की शादी करेगा।
यह तो उसने कभी सोचा ही नहीं था कि यहां वह इशा किरन की मोहबत में इतना डूब जाएगा कि सब कुछ पीछे छोड़ कर उसे ईशा के बार में ही सोचना पड़ेगा।
इस तरह की बातें सोचते हुए वह इशा के साथ लेक्चर अटेंड करने चले गया। “मम्मी! असफंद गांव जा रहा है, वह अपने घर वालों को साथ लाएगा, आपसे बात करने के लिए।
इशा ने सितारा बेगम को जानकारी दी। चाय पीते हुए उन्होंने उसकी बात बुहत गौर से सुनी । फिर कुछ सोचते हुए बोलीं । “तुम भी उसके साथ चली जाओ।”
“जी” वह चौंक गई। “इसमें इतना हैरान होने वाली कौन सी बात है, तुम उसे पसन्द करती हो उससे शादी करना चाहती हो तो शादी से पहले उसका गांव, उसका घर, उसका रहन सहन देख आओ।
मेरे ख्याल में इसमें कोई हरज नहीं। उन्होंने बहुत सुकून से जवाब दिया। “मम्मी! आप कह तो ठीक रही हैं। मैं असफंद से बात करती हू ।
हम कुछ दिन युनीवर्सिटी से आफ कर लेते हैं। वैसे भी फाइनल सिमस्टर होने वाले हैं लेक्चर्ज बहुत कम होते हैं ।” वह म॒स्कराते हुए बोली फिर मोबाइल पर असफंद का नम्बर मिलाते हुए वहां से उठ गई ।
बेगम हमारी बेटी बहुत खुश लग रही है, ऐसा क्या कह दिया तुमने? महमूद साहब ने आते हुए बेटी को खुश देख कर पूछा। “अब हमारी इशा मुईज कमाल से जरूर शादी करेगी ।” वह चाय का कप रखते हुए बोली ।
“मैं समझा नहीं ?'' वह कुर्सी पर बैठते हुए बोले । बेगम ने उनके लिए चाय निकालते हुए सारी बात तफ्सील से बताई ।
“तो तुम्हारा क्या ख्याल है, वह उसका घर वगैरह देखकर शादी से इन्कार कर देंगी, मुझे नहीं लगता ।” वह चाय का कप पकड़ते हुए बोले ।
“वह मेरी बेटी है, इतना तो उसे मैं जानती हू अगर इन्कार नहीं करेगी तो कुछ लम्हो के लिए सोचेगी जरूर, उसकी सोच में हल्की सी दरार ही उसके सिर से मुहबत का भूत उतार सकती है । सितारा बेगम की बात सुन कर उन्होंने समझते हुए सर हिलाया।
इशा ने जब गांव जाने के लिए कहा तो असफंद खुशी खुशी राजी हो गया, अच्छा था उसके सामने अम्मां ज्यादा पूछतांछ नहीं करेंगी, इशा बहुत खुश थी, ज्यादा खुशी उसे इस बात की थी कि मम्मी डैडी ने खुद उसे इजाजत दी थी।
बस में सफर करके आगे के रास्ते गांव में वह बेल गाड़ी से गए यह सब उसे इतना अच्छा लगा कि वह बच्चों की तरह खुश हो रह थी, उसने जींस पहनी हुई थी, इसलिए गांव के
लोग उसे बड़ी हैरानी से देख रहे थे, वह सब कुछ इंज्वाय कर रही थी, फिर वह एक छोटी सी गली, जिसमें गन्दे सन्दे बच्चे खेल रहे थे । कच्ची गली में जगह जगह पानी भरा हुआ था ।
जो न जाने कितने दिनों से भरा पड़ा था । उसमें मच्छरों की भरमार थी। इशा ने बदबू की भर मार से मुंह मोड़ लिया ।
असफंद सर झुकाए उसके साथ चल रहा था फिर वह एक कच्चे और छोटे से घर के आगे रुक गए । लकड़ी का टूटा फूटा सा दरवाजा, जिस पर टाट का पर्दा लगा हुआ था।
असफंद ने उसे उठाया । सामने कच्चे मगर साफ सुथरे सहन में मुर्गियां इधर उधर भाग रही थीं।
सामने छोटा सा बरामदा, जिसमें लकड़ी का तख्त बिछा हुआ था, जिस पर पुरानी मगर साफ सुथरी सुर्ख रंग के फूलों वाली चादर बिछी हुई थी।
तख़्त पर बैठी एक बूढ़ी औरत चश्मा लगाए चावल चुन रही थीं। अचानक उन्होंने सामने देखा । “शुक्र है असफंद मेरा बेटा मेरा चांद आ गया कोई खबर भी नहीं दी मेरे बच्चे ने अरे हुमैरा! समीरा! किधर हो? देखो भाई आया है ।”
कमरे से दो लड़की तकरीबन एक सी शक्ल और हम उम्र लग रही थीं, कमजोर सी साफ सुथरे सादा से कपड़े पहने निकलीं ।
“भईया!” असफंद से लिपट गई थीं फिर उनकी नजर इशा पर पड़ी तो वह चौंक गई।' “यह इतनी खूबसूरत लड़की कौन है?”
उनकी आंखों में हैरत थी, अम्मां भी हैरान होकर देख रही थीं। “अम्मा! यह इशा किरन हैं, यूनीवर्सिटी में मेरें साथ पढती हैं, गांव देखने आई हैं कुछ दिन रहेगी, बाकी बातें फिर बताऊंगा ।”
“अरे मेरा बच्चा! अन्दर आकर बैठ साथ मेहमान हैं और हमने तुम्हें सहन में ही रोक लिया। अन्दर आओ ।”
अम्मां ने बहुत मुहब्बत से उसके सर पर हाथ फेरा और अन्दर ले गई। छोटा सा कमरा, जिसमें एक पुरानी कालीन बिछी थी। उस पर प्लास्टिक की कुछ कुर्सियां और मोढ़े पड़े थे। दीवार के साथ छोटा सा बेड लगा था ।
सामने दीवार के साथ लकड़ी के छोटे से टेबल पर टीवी रखा था । वह एक कुर्सी पर बैठ गई। “हुमैरा! समीरा! बेटी जाओ कोई चाय पानी ले कर आओ फिर खाने का इन्तिज़ाम भी करो ।” अम्मां ने बेटियों से कहा।
“जी ठीक है अम्मां!' वह दोनों बाहर चली गई । “बेटी इधर बेड पर आ जाओ। ठीक से बैठ जाओ । सफर की थकान होगी ना।”
अम्मां ने मुहब्बत भरे लहजे में कहा “वह मुझे फ्रेश होना है ।” उसने धामी आवाज में कहा । “अम्मां! इन्हें जरा वाश रूम ले जाएं।” असफंद ने कहा । “बेटा! तुम अपने कपड़े निकाल लो ।
मैं गुस्लखाने में पानी वगैरह देखकर आती हूं ।” वह बाहर निकल गई। “तुम आराम से फ्रेश हो जाओ । चाय वगैरह पियो हम फिर बात करेंगे” असफंद यह कह कर बाहर चला गया ।
उसने एक ठंडी आह भरी और बेग में से कपड़े निकाले । “अच्छा हुआ मैंने सादा से कपड़े भी रख लिए, वर्ना जींस में तो सब लोग मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे में कोई जोकर हूं ।” फिर अम्मां आ गई तो वह मुस्कुरा कर उनके साथ वाशरूम चली गई ।
वाश रूम था या कोई दरबा प्लास्टिक के टब में पानी भरा था, कोई शावर वगैरह नहीं था। “उफ में कैसे नहाऊंगी।” उसे अपने घर का वाशरूम याद आ गया।
अब मजबूरी थी, सफर के वक्त की मिट्टी धूल जमी थी उसकी नफासत पसंद तबीअत से बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि वह फ्रेश हुए बगैर पानी भी पीले, जैसे तैसे वह फ्रेश होकर बाहर निकल आई ।
उसी कमरे में प्लास्टिक की टेबल पर चाय के साथ बिस्किट, नमकीन, शामी कबाब और चिप्स वगैरह रखे थे।
चाय पी कर उसे मानना पडा कि ऐसा जायका उसके घर के बावर्ची में भी नहीं है फिर जब उसने खाना खाया, बिरयानी इतने मज़े की थी कि उसका जी चाहा वह उंगलियां चाटती रहे ।
हुमैरा, समीरा इतनी अच्छी थीं उसने ढेरों बातें करना चाही थीं। लेकिन अब उसे नीन्द आ रही थी। असफंद ने महसूस कर लिया।
“आओ इशा! मैं तुम्हें अपना छोटा सा घर दिखाऊ फिर तुम आराम करना।” एक कमरे में दो बेड लगे थे, उनके सेंटर में टेबल पड़ा हुआ था, जिस पर कुछ किताबे सलीके से रखी थीं । “यह हुमैरा, समीरा का कमरा है।”
फिर एक कमरे में नीले रंग का कापैट बिछा हुआ था और सेंटर में बेड लगा हुआ था । दीवार के साथ दो कुर्सियां रखी थीं।
दीवार पर बहुत खूबसूरत कुदरती मन्जर की तस्वीर लगी थीं। “यह तुम्हारा कमरा है ना?” उसने खुश होकर पूछा ।
“यस!” असफंद ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। । “फिर तो में यही आराम करूंगी।” वह बेड पर बैंठते हुए बोली ।
“जब मैं तुम्हारा तो मेरी हर चीज तुम्हारी ।” उसने इशा के खिले खिले चेहरे की तरफ देखा। “अच्छा अब जाओ, मुझे आराम करने दो।” वह शर्माते हुए बोली।
असफंद मुस्कुराता हुआ बाहर चला गया। उम्मीद के मुताबिक अम्मां बरामदे में असफंद का इन्तिजार कर रही थीं। वह उनके करीब ही बैठ गया ।
वह जानता था कि अम्मां क्या पूछना चाह रही हैं । इसलिए उसने साफ साफ बात बता दी । अम्मा कुछ देर खामोश रहीं फिर बोलीं ।
“मुझे तुम्हारी खुशी का पूरा ख्याल हे जहां हुमैरा, समीरा मेरी बेटियां हैं, जैसे तैसे मैं मशीन चला कर, वह बच्चों को टियूशन पढ़ाकर इस घर को चला रही हैं ऐसे ही इशा को भी दो वक्त का खाना मिल जाएगा ।”
अम्मां के चेहरे पर उम्मीद के बुझे दियो को देख कर असफंद के दिल को जैसे किसी ने मुठी में ले लिया हो उसने दिल में फैसला किया की वह इशा से जितनी भी मुहब्बत करता है, लेकिन मां से वादा किया था वह भी जरूर निभाएगा ।
गर्मियो के दिन थे, रात खुले सहन में चारपाईयां बिछाई गईं। वह हुमैरा, समीरा से बाते करती रही । दोनों जुड़वां बहनें थीं। हाल ही में मेट्रिक किया था । वह भी किसी साथ वाले कस्बै से किया था ।
उनके गांव में तो मिडिल क्लास तक स्कूल न था। उससे आगे उन्हें पढ़े का शौक तो था, लेकिन पढ़ नहीं सकती थीं इशा को वह इतनी प्यारी लगी उसने सोचा वह जरूर इन दोनों के लिए कुछ करेगी फिर अम्मां ने कहा।
“रात बहुत हो गई है अब तुम लोग सो जाओ।” इशा की बडी मुश्किल से आंख लगी थी कि उसे गर्मी का एहसास हुआ। वह उठ कर बैठ गई । लाइट चली गई थी। उसका दम घुटने लगा था । सब आराम से सो रहे थे।
फिर उसे मच्छरों ने काटना शुरू कर दिया । उसका दिल चाहा कि वह ऊंची आवाज में रोना शुरू कर दे, रात भी पहाड़ जैसी हो गई थी। सारी रात गर्मी, उमस।
रात उसने बड़ी तकलीफ से गुजरी, सुबह होते हि उसने सामान पैक किया । “असफंद मुझे घर जाना है, मुझे यहां नहीं रहना। लेकिन हुआ क्या है कुछ बताओ तो सही ।
वह परीशान हो गया था। “बस मुझे जाना है।” वह जिद कर रही थी फिर अम्मी हुमैरा, समीरा से सरसरी तौर पर मिल कर वह दिल्ली का चला आया।
सितारा बेगम और महमूद साहब को कुछ ज़्यादा हैरानी नहीं हुई, उनकी बेटी थी वह जानते थे कि किन सुकूनों में पली बढ़ी है, लेकिन उन्हें उस वक्त परीशानी का सामना करना पड़ जब वह बीमार हो गई।
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उसे मलेरिया हो गया था। उसे अस्पताल में दाखिल करना पड़ा । असफंद शर्मिन्दा होकर उसकी देखभाल के लिए आता जाता था । जब वह सेहत याब होकर घर आ गई तो सितारा बेगम ने उससे असफंद के बारे में पूछा तो वह बोली ।
“शादी तो अब भी मैं उसी से करूंगी, लेकिन वह यहीं रहेगा मेरे साथ मैं गांव नहीं जाऊंगी ।” उन्होंने असफंद को बुला कर सारी बात की। उसे नहीं मानना था वह नहीं माना । उसने कहा ।
“ इशा मेरे साथ शादी करके मेरे साथ घर पर रहेगी मेरी मां और बहनों के साथ ।” “बेटा! आप अपने घर वालों को यहां ले आएं हम अपनी बेटी को अलग से मकान देंगे।” महमूद साहब ने उसे समझाया ।
“नहीं अंकल! मैं नहीं कर सकता । गरीब आदमी में ईगो बहुत होती है।” महमूद अहमद ओर सितारा बेगम यह बात जानते थे। सब कुछ ठीक हो गया था।
इशा को जब पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ। “असफ़द ने ईगो में आकर मुझे ठुकरा दिया, मुहब्बत में तो ईगो नहीं होती ।” वह बहुत रोई थी और यह बात भूल गई थी कि ठुकराया तो उसने है असफंद को उसकी गरीबी की वजह से।
फाइनल एग्जाम हो गए थे। असफंद से उसका मिलना जुलना बन्द हो गया था। वह खामोश रहने लगी थी । असफंद से उसने कोई गिला शिकवा नहीं किया था।
बस खामोशी से जाने कहां चला गया था । इशा ने सोचा कि वह शादी नहीं करेगी, लेकिन मुईज़ कमाल की मुहब्बत और दोस्ती ने उसे संभाला तो उसने मम्मी डैडी के सामने सर झुका दिया।
मुईज कमाल अच्छा शैहर साबित हुआ था । वह मुतमईन थी, लेकिन शादी के एक साल बाद ही उसके मम्मी डैडी एक हादिसे में इस दुनिया से चले गए ।
उसके लिए यह सब एक शाक से कम नहीं था, लेकिन मुईज़ कमाल और उसके घर वालों ने उसे बहुत अच्छी तरह ट्रीट किया ।
उसमें मां बाप की छोड़ी हुई जायदाद फिर मुईज कमाल का बिजनिस, वह शहर के अमीर तरीन लोग थे फिर खुदा ने उसे एक खूबसूरत सा बेटा भी दिया । वह खुद को खुश किस्मत समझती थी।
असफंद यार से उसने मुहब्बत की थी कभी कभार वह याद बनकर उसके दिल में चुटकियां लेता था, जिसे वह हमेशा भुलाने की कोशिश करती थी।
एक दम उसकी हंसती बसती जिन्दगी को जेसे किसी की नजर लग गई थी। बिजनिस में दिन ब दिन नुकसान होता जा रहा था।
मुईज़ कमाल ने बहुत कोशिश की, लेकिन बेकार, दो साल में ही उन्हें अपनी सारी जायदाद से हाथ धोना पड़ा । बैंक से इतना लोन लिया कि वापस न करने पर बैंक ने उनकी सारी जायदाद जब्त कर ली ।
वह आसमान से जमीन पर आन गिरे थे । उनका आलीशान मकान भी नीलाम हो गया था। यह किराए के मकान में रहने लगे ।
उस पल इशा को असफंद का कच्चा, मगर हवादार घर अपने घर से ज्याद अच्छा लगा। अब तो कदम कदम पर उसे असफंद याद आता था, जिसे उसने और उसके घर वालों ने ग़रीबी की वजह से ठुकरा दिया था ओर आज वह खुद को कोडी कोडी की मोहताज समझ रहीं थी।
मुईज कमाल ज्यादातर घर से बाहर काम की तलाश में रहता था। घर आता तो ज़्यादातर खामोश झुझलाता था, वह भी अब खास काम और जरूरत के लिए ही उससे बात करती थी। एक दिन तो हद ही हो गई।
इशा ने उसे कहा कि उसे मार्केट से अपनी जरूरत की कुछ चीजें लेनी हैं यह बात सुनकर वह भड़क उठा । “मैं डाके डालूं क्या? जब तुम्हें पता है कि फजूल खर्ची के लिए मेरे पास पैसा नहीं है तो फिर तुम क्यों तंग करती हो ।”
“मुईज! अब जो जरूरत है वह तो पूरी करनी है और जरूरत पूरी करने के लिए मुझे आपसे ही मांगना है।
“तुम्हारी वजह से आज में आसमान से जमीन पर आ गया हूं, मनहूस हो, तुमने मुझे भी बर्बाद कर दिया मैं तो उस दिन को कोसता हूं जब तुम से शादी की थी।” और भी वह जाने क्या क्या कह रहा था।
नन्हें मुन्ने हादी की आवाज सुनकर वह कमरे में चली गई । हादी के साथ वह भी खूब रोई थी। मुहब्बत और रिश्ते ऐसे भी बदलते हैं ।
हादी का दूध और बहुत सारी चीजें जो खत्म हो गई थीं । वह खुद तो जैसे गुजार कर लेती लेकिन हादी तो बच्चा था, इसलिए उसने हादी को उठाया घर में ताला लगाया और अपने
जेवरों में से बचने वाले इयररिंग बेचने के लिए सुनार के पास चली गई। वह सोच रही थी कि वह जाब करेगी अपने और अपने बच्चे के लिए । जिन्दगी तो गुजारनी ही थी अब जैसे भी गुजरे।
“डोंट टच मी, मुईज़ कमाल तुम मेरे लिए आसमान से तारे भी तोड़ कर ले आओगे न तब भी मैं तुम्हारी बात का यकीन नहीं करूंगी ।”
वह खुद को उसकी गिरफ्त से छुड़ाते हुए बोली । “इसलिए.....इसलिए ना कि तुम उस मिडिल क्लास असफंद यार से मुहब्बत करती हो ।”
मुईज़ ने चुभते हुए लहजे में कहा । “मैं किसी से मुहब्बत करूं या न करूं, मेरी लाइफ है, तुम्हें इसके बारे में पूछने का कोई हक नहीं है ।” वह गुर्राते हुए बोली ।
देखो इशा! मेरी बात समझने की कोशिश करो, जिन्दगी गुज़ारने के लिए सिर्फ मुहब्बत ही काफी नहीं होती और भी बहुत कुछ होता है ।
वह सब कुछ असफंद यार के पास नहीं है। वह टियूशन पढ़ा पढ़ा कर यूनीवर्सिटी के खर्चे पूरे करता है । वह तुम्हारे खर्चे कैसे बर्दाश्त करेगा ।
तुम ऐशोइ सुकून की आदी हो, तुम मिडिल क्लास के लोगों के माहौल में नहीं रह सकती, मेरे पास दुनिया जहां की, न सिर्फ हर चीज है, बल्कि मैं तुमसे मुहब्बत भी करता हूं।
“मुईज़ कमाल! तुम अपना यह लेक्चर किसी और को सुनाओ, मैं बात में आने वालों में से नहीं हूं। मैंने असफंद यार के अच्छे नेचर, उसकी अच्छी पर्सनाल्टी और उसके अच्छे
केरेक्टर से मुहब्बत की है उसके स्टेटस या फिर उसकी दौलत देख कर नहीं और मुहब्बत इन चीजों की मोहताज नहीं होती आईन्दा मुझे समझाने की कोशिश मत करना, वर्ना अच्छा नहीं होगा।"
वह उसे ख़बरदार करती हुई वहां से चली आई। मुईज़ कमाल ने जमीन पर पांव से जोर से ठोकर मारी, फिर पार्किंग की तरफ आ गया।
क्लासेज छोड़ कर वह गाडी में बैठ कर सड़क पर कुछ देर इधर उधर फिरता रहा फिर थक हार कर घर चला गया।
“इशा कभी कभी मुझे तुम्हारा साथ एक ख्वाब लगता है ऐसा ख्वाब जिसकी ताबीर के बारे में मैं कुछ नहीं जानता ।” असफंद यार ने पानी में कंकर उछालते हुए कहा।
“असफंद तुम ख्याली दुनिया से बाहर आकर हकीकत की दुनिया में आंख खोलो तुम्हारा मेरा साथ ख्वाब नहीं हकीकत है, मैं तुमसे इतना प्यार करती हूं कि तुम्हारे लिए वह सभी आराम छोड सकती हूं ।
जिन चीजों का लालच देकर मुईज़ कमाल और मेरे घर वाले मुझे तुम से दूर करने की कोशिशों में लगे हैं। वह लोग कभी नहीं समझ सकते कि मुहब्बत इन चीज़ो की मोहताज नहीं होती ।”
वह समझाते हुई बोली फिर असफंद यार की तरफ़ देखा जो खामोशी से सामने पानी में फेंके हुए पत्थर से पैदा होने वाली लहरों को बहुत गौर से देख रहा था । “ओ....ह...हो.... हम क्या बोरिंग टापिक लेकर बैठ गए....चलो केन्टीन चलते हैं ।"
इशा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा । वह चुपचाप उसके साथ चलने लगा। यूं सलीके से याद आते होजैसे बारिश हो वक्फे वक्फे से मुईज़ कमाल की आवाज पर दोनों ने मुड़ कर देखा।
“यह कहां से आ गया? ” इशा ने बुरा सा मुंह बनाया । “मैं तुम्हारी जिन्दगी में हर जगह नजर आना चाहता हू । ” वह उनके सामने आकर मुस्कुराते हुए बोला ।
“मुईज़ कमाल तुम अपनी हद में रहा करो। “असफंद ने दांत पीसत हुए कहा । "चलो इसके मुँह मत लगो ।”
इशा उसे धकेलते हुए वहां से ले गई। वह नहीं चाहती थी कि यूनिवर्सिटी में उनका तमाशा बने।
“तो फिर क्या सोचा तुमने?” मम्मी ने डिनर के वक्त इशा से पूछा। “किस बारे में मम्मी!” वह लापरवाही से बोली ।
“वही मुईज़ कमाल के प्रोप्रोजल के बारे में” उन्होंने कुछ सख्त लहजे में कहा । “प्लीज मम्मी! इस टापिक को यहीं खत्म कर दें, मैंने पहले भी आपसे कहा था आप क्यों इस बात को रोजाना दोहराती हैं।”
वह उकताए हुए लहजे में बोली । “बैटा! आप रिलेक्स होकर खाना खाएं, हम फिर कभी बात कर लेंगे।” डैडी ने बहुत नर्म लहजे में कहा ।
“आपने ही इसे बहुत सर पर चढ़ा रखा है, इकलौती होने का यह मतलब नहीं है कि यह असफंद यार जैसे मिडिल क्लास का हाथ थाम ले ।”
वह गुस्से से बोली । ''डैडी! आप ही इस टापिक को लेकर बैठें, सुकून से बात करें या फिर जगड़े, मैं जा रही हूं, मुझे खाना नहीं खाना ।” वह उठ कर चली गई।
महमूद अहमद और सितारा बेगम ने दुख से अपनी लाडली बेटी की तरफ देखा, जो इतनी जिद्दी थी कि जिस बात या काम के पीछे पड़ती, वह करके ही छोड़ती थी। फिर उन दोनों ने भी खाना नहीं खाया।
“असफंद! तुम गांव कब जा रहे हो?” इशा के लहज़े में ऐसा कुछ था कि वह चौंक सा गया। “क्या बात है इशा तुम कुछ परीशान सी लग रही हो?”
असफंद! मुईज़ कमाल ने जब से प्रोपोज़ल भेजा है, मम्मी डैडी मुझसे रोज पूछते हैं, मैं हजार बार मना कर चुकी हू लेकिन वह कहते हैं कि मुईुज कमाल न सिर्फ हमारी क्लास का है, बल्कि उसके डैडी मेरे डैडी के गहरे दोस्त भी हैं, इसलिए मुझे हां कह देना चाहिए ।
इसलिए मैं चाहती हूं की तुम गाव जाकर अपने मां बाप और बहनों को ले आओ ।” इशा की बात पर वह और परीशान हो गया, लेकिन मुस्कुरा कर बोला।
“तुम फिक्र मत करो मैं इसी हफ्ते जाऊंगा और उन्हें ले आऊंगा, लेकिन तुम्हारे घर वाले?” “असफंद वह मेरी जिम्मेदारी है तुम बस उनको ले आओ।”
उसने मुस्कुरा कर उसकी बात काटी। “ओ.के. ठीक है।” वह कुछ मुतमइन सा हो गया, क्योंकि अभी घर जाकर अम्मा को समझाना था, वह मुम्बई इसलिए आया था कि पढ़ कर अच्छी जाब हासिल करेगा और दोनों बहनो की शादी करेगा।
यह तो उसने कभी सोचा ही नहीं था कि यहां वह इशा किरन की मोहबत में इतना डूब जाएगा कि सब कुछ पीछे छोड़ कर उसे ईशा के बार में ही सोचना पड़ेगा।
इस तरह की बातें सोचते हुए वह इशा के साथ लेक्चर अटेंड करने चले गया। “मम्मी! असफंद गांव जा रहा है, वह अपने घर वालों को साथ लाएगा, आपसे बात करने के लिए।
इशा ने सितारा बेगम को जानकारी दी। चाय पीते हुए उन्होंने उसकी बात बुहत गौर से सुनी । फिर कुछ सोचते हुए बोलीं । “तुम भी उसके साथ चली जाओ।”
“जी” वह चौंक गई। “इसमें इतना हैरान होने वाली कौन सी बात है, तुम उसे पसन्द करती हो उससे शादी करना चाहती हो तो शादी से पहले उसका गांव, उसका घर, उसका रहन सहन देख आओ।
मेरे ख्याल में इसमें कोई हरज नहीं। उन्होंने बहुत सुकून से जवाब दिया। “मम्मी! आप कह तो ठीक रही हैं। मैं असफंद से बात करती हू ।
हम कुछ दिन युनीवर्सिटी से आफ कर लेते हैं। वैसे भी फाइनल सिमस्टर होने वाले हैं लेक्चर्ज बहुत कम होते हैं ।” वह म॒स्कराते हुए बोली फिर मोबाइल पर असफंद का नम्बर मिलाते हुए वहां से उठ गई ।
बेगम हमारी बेटी बहुत खुश लग रही है, ऐसा क्या कह दिया तुमने? महमूद साहब ने आते हुए बेटी को खुश देख कर पूछा। “अब हमारी इशा मुईज कमाल से जरूर शादी करेगी ।” वह चाय का कप रखते हुए बोली ।
“मैं समझा नहीं ?'' वह कुर्सी पर बैठते हुए बोले । बेगम ने उनके लिए चाय निकालते हुए सारी बात तफ्सील से बताई ।
“तो तुम्हारा क्या ख्याल है, वह उसका घर वगैरह देखकर शादी से इन्कार कर देंगी, मुझे नहीं लगता ।” वह चाय का कप पकड़ते हुए बोले ।
“वह मेरी बेटी है, इतना तो उसे मैं जानती हू अगर इन्कार नहीं करेगी तो कुछ लम्हो के लिए सोचेगी जरूर, उसकी सोच में हल्की सी दरार ही उसके सिर से मुहबत का भूत उतार सकती है । सितारा बेगम की बात सुन कर उन्होंने समझते हुए सर हिलाया।
इशा ने जब गांव जाने के लिए कहा तो असफंद खुशी खुशी राजी हो गया, अच्छा था उसके सामने अम्मां ज्यादा पूछतांछ नहीं करेंगी, इशा बहुत खुश थी, ज्यादा खुशी उसे इस बात की थी कि मम्मी डैडी ने खुद उसे इजाजत दी थी।
बस में सफर करके आगे के रास्ते गांव में वह बेल गाड़ी से गए यह सब उसे इतना अच्छा लगा कि वह बच्चों की तरह खुश हो रह थी, उसने जींस पहनी हुई थी, इसलिए गांव के
लोग उसे बड़ी हैरानी से देख रहे थे, वह सब कुछ इंज्वाय कर रही थी, फिर वह एक छोटी सी गली, जिसमें गन्दे सन्दे बच्चे खेल रहे थे । कच्ची गली में जगह जगह पानी भरा हुआ था ।
जो न जाने कितने दिनों से भरा पड़ा था । उसमें मच्छरों की भरमार थी। इशा ने बदबू की भर मार से मुंह मोड़ लिया ।
असफंद सर झुकाए उसके साथ चल रहा था फिर वह एक कच्चे और छोटे से घर के आगे रुक गए । लकड़ी का टूटा फूटा सा दरवाजा, जिस पर टाट का पर्दा लगा हुआ था।
असफंद ने उसे उठाया । सामने कच्चे मगर साफ सुथरे सहन में मुर्गियां इधर उधर भाग रही थीं।
सामने छोटा सा बरामदा, जिसमें लकड़ी का तख्त बिछा हुआ था, जिस पर पुरानी मगर साफ सुथरी सुर्ख रंग के फूलों वाली चादर बिछी हुई थी।
तख़्त पर बैठी एक बूढ़ी औरत चश्मा लगाए चावल चुन रही थीं। अचानक उन्होंने सामने देखा । “शुक्र है असफंद मेरा बेटा मेरा चांद आ गया कोई खबर भी नहीं दी मेरे बच्चे ने अरे हुमैरा! समीरा! किधर हो? देखो भाई आया है ।”
कमरे से दो लड़की तकरीबन एक सी शक्ल और हम उम्र लग रही थीं, कमजोर सी साफ सुथरे सादा से कपड़े पहने निकलीं ।
“भईया!” असफंद से लिपट गई थीं फिर उनकी नजर इशा पर पड़ी तो वह चौंक गई।' “यह इतनी खूबसूरत लड़की कौन है?”
उनकी आंखों में हैरत थी, अम्मां भी हैरान होकर देख रही थीं। “अम्मा! यह इशा किरन हैं, यूनीवर्सिटी में मेरें साथ पढती हैं, गांव देखने आई हैं कुछ दिन रहेगी, बाकी बातें फिर बताऊंगा ।”
“अरे मेरा बच्चा! अन्दर आकर बैठ साथ मेहमान हैं और हमने तुम्हें सहन में ही रोक लिया। अन्दर आओ ।”
अम्मां ने बहुत मुहब्बत से उसके सर पर हाथ फेरा और अन्दर ले गई। छोटा सा कमरा, जिसमें एक पुरानी कालीन बिछी थी। उस पर प्लास्टिक की कुछ कुर्सियां और मोढ़े पड़े थे। दीवार के साथ छोटा सा बेड लगा था ।
सामने दीवार के साथ लकड़ी के छोटे से टेबल पर टीवी रखा था । वह एक कुर्सी पर बैठ गई। “हुमैरा! समीरा! बेटी जाओ कोई चाय पानी ले कर आओ फिर खाने का इन्तिज़ाम भी करो ।” अम्मां ने बेटियों से कहा।
“जी ठीक है अम्मां!' वह दोनों बाहर चली गई । “बेटी इधर बेड पर आ जाओ। ठीक से बैठ जाओ । सफर की थकान होगी ना।”
अम्मां ने मुहब्बत भरे लहजे में कहा “वह मुझे फ्रेश होना है ।” उसने धामी आवाज में कहा । “अम्मां! इन्हें जरा वाश रूम ले जाएं।” असफंद ने कहा । “बेटा! तुम अपने कपड़े निकाल लो ।
मैं गुस्लखाने में पानी वगैरह देखकर आती हूं ।” वह बाहर निकल गई। “तुम आराम से फ्रेश हो जाओ । चाय वगैरह पियो हम फिर बात करेंगे” असफंद यह कह कर बाहर चला गया ।
उसने एक ठंडी आह भरी और बेग में से कपड़े निकाले । “अच्छा हुआ मैंने सादा से कपड़े भी रख लिए, वर्ना जींस में तो सब लोग मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे में कोई जोकर हूं ।” फिर अम्मां आ गई तो वह मुस्कुरा कर उनके साथ वाशरूम चली गई ।
वाश रूम था या कोई दरबा प्लास्टिक के टब में पानी भरा था, कोई शावर वगैरह नहीं था। “उफ में कैसे नहाऊंगी।” उसे अपने घर का वाशरूम याद आ गया।
अब मजबूरी थी, सफर के वक्त की मिट्टी धूल जमी थी उसकी नफासत पसंद तबीअत से बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि वह फ्रेश हुए बगैर पानी भी पीले, जैसे तैसे वह फ्रेश होकर बाहर निकल आई ।
उसी कमरे में प्लास्टिक की टेबल पर चाय के साथ बिस्किट, नमकीन, शामी कबाब और चिप्स वगैरह रखे थे।
चाय पी कर उसे मानना पडा कि ऐसा जायका उसके घर के बावर्ची में भी नहीं है फिर जब उसने खाना खाया, बिरयानी इतने मज़े की थी कि उसका जी चाहा वह उंगलियां चाटती रहे ।
हुमैरा, समीरा इतनी अच्छी थीं उसने ढेरों बातें करना चाही थीं। लेकिन अब उसे नीन्द आ रही थी। असफंद ने महसूस कर लिया।
“आओ इशा! मैं तुम्हें अपना छोटा सा घर दिखाऊ फिर तुम आराम करना।” एक कमरे में दो बेड लगे थे, उनके सेंटर में टेबल पड़ा हुआ था, जिस पर कुछ किताबे सलीके से रखी थीं । “यह हुमैरा, समीरा का कमरा है।”
फिर एक कमरे में नीले रंग का कापैट बिछा हुआ था और सेंटर में बेड लगा हुआ था । दीवार के साथ दो कुर्सियां रखी थीं।
दीवार पर बहुत खूबसूरत कुदरती मन्जर की तस्वीर लगी थीं। “यह तुम्हारा कमरा है ना?” उसने खुश होकर पूछा ।
“यस!” असफंद ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। । “फिर तो में यही आराम करूंगी।” वह बेड पर बैंठते हुए बोली ।
“जब मैं तुम्हारा तो मेरी हर चीज तुम्हारी ।” उसने इशा के खिले खिले चेहरे की तरफ देखा। “अच्छा अब जाओ, मुझे आराम करने दो।” वह शर्माते हुए बोली।
असफंद मुस्कुराता हुआ बाहर चला गया। उम्मीद के मुताबिक अम्मां बरामदे में असफंद का इन्तिजार कर रही थीं। वह उनके करीब ही बैठ गया ।
वह जानता था कि अम्मां क्या पूछना चाह रही हैं । इसलिए उसने साफ साफ बात बता दी । अम्मा कुछ देर खामोश रहीं फिर बोलीं ।
“मुझे तुम्हारी खुशी का पूरा ख्याल हे जहां हुमैरा, समीरा मेरी बेटियां हैं, जैसे तैसे मैं मशीन चला कर, वह बच्चों को टियूशन पढ़ाकर इस घर को चला रही हैं ऐसे ही इशा को भी दो वक्त का खाना मिल जाएगा ।”
अम्मां के चेहरे पर उम्मीद के बुझे दियो को देख कर असफंद के दिल को जैसे किसी ने मुठी में ले लिया हो उसने दिल में फैसला किया की वह इशा से जितनी भी मुहब्बत करता है, लेकिन मां से वादा किया था वह भी जरूर निभाएगा ।
गर्मियो के दिन थे, रात खुले सहन में चारपाईयां बिछाई गईं। वह हुमैरा, समीरा से बाते करती रही । दोनों जुड़वां बहनें थीं। हाल ही में मेट्रिक किया था । वह भी किसी साथ वाले कस्बै से किया था ।
उनके गांव में तो मिडिल क्लास तक स्कूल न था। उससे आगे उन्हें पढ़े का शौक तो था, लेकिन पढ़ नहीं सकती थीं इशा को वह इतनी प्यारी लगी उसने सोचा वह जरूर इन दोनों के लिए कुछ करेगी फिर अम्मां ने कहा।
“रात बहुत हो गई है अब तुम लोग सो जाओ।” इशा की बडी मुश्किल से आंख लगी थी कि उसे गर्मी का एहसास हुआ। वह उठ कर बैठ गई । लाइट चली गई थी। उसका दम घुटने लगा था । सब आराम से सो रहे थे।
फिर उसे मच्छरों ने काटना शुरू कर दिया । उसका दिल चाहा कि वह ऊंची आवाज में रोना शुरू कर दे, रात भी पहाड़ जैसी हो गई थी। सारी रात गर्मी, उमस।
रात उसने बड़ी तकलीफ से गुजरी, सुबह होते हि उसने सामान पैक किया । “असफंद मुझे घर जाना है, मुझे यहां नहीं रहना। लेकिन हुआ क्या है कुछ बताओ तो सही ।
वह परीशान हो गया था। “बस मुझे जाना है।” वह जिद कर रही थी फिर अम्मी हुमैरा, समीरा से सरसरी तौर पर मिल कर वह दिल्ली का चला आया।
सितारा बेगम और महमूद साहब को कुछ ज़्यादा हैरानी नहीं हुई, उनकी बेटी थी वह जानते थे कि किन सुकूनों में पली बढ़ी है, लेकिन उन्हें उस वक्त परीशानी का सामना करना पड़ जब वह बीमार हो गई।
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उसे मलेरिया हो गया था। उसे अस्पताल में दाखिल करना पड़ा । असफंद शर्मिन्दा होकर उसकी देखभाल के लिए आता जाता था । जब वह सेहत याब होकर घर आ गई तो सितारा बेगम ने उससे असफंद के बारे में पूछा तो वह बोली ।
“शादी तो अब भी मैं उसी से करूंगी, लेकिन वह यहीं रहेगा मेरे साथ मैं गांव नहीं जाऊंगी ।” उन्होंने असफंद को बुला कर सारी बात की। उसे नहीं मानना था वह नहीं माना । उसने कहा ।
“ इशा मेरे साथ शादी करके मेरे साथ घर पर रहेगी मेरी मां और बहनों के साथ ।” “बेटा! आप अपने घर वालों को यहां ले आएं हम अपनी बेटी को अलग से मकान देंगे।” महमूद साहब ने उसे समझाया ।
“नहीं अंकल! मैं नहीं कर सकता । गरीब आदमी में ईगो बहुत होती है।” महमूद अहमद ओर सितारा बेगम यह बात जानते थे। सब कुछ ठीक हो गया था।
इशा को जब पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ। “असफ़द ने ईगो में आकर मुझे ठुकरा दिया, मुहब्बत में तो ईगो नहीं होती ।” वह बहुत रोई थी और यह बात भूल गई थी कि ठुकराया तो उसने है असफंद को उसकी गरीबी की वजह से।
फाइनल एग्जाम हो गए थे। असफंद से उसका मिलना जुलना बन्द हो गया था। वह खामोश रहने लगी थी । असफंद से उसने कोई गिला शिकवा नहीं किया था।
बस खामोशी से जाने कहां चला गया था । इशा ने सोचा कि वह शादी नहीं करेगी, लेकिन मुईज़ कमाल की मुहब्बत और दोस्ती ने उसे संभाला तो उसने मम्मी डैडी के सामने सर झुका दिया।
मुईज कमाल अच्छा शैहर साबित हुआ था । वह मुतमईन थी, लेकिन शादी के एक साल बाद ही उसके मम्मी डैडी एक हादिसे में इस दुनिया से चले गए ।
उसके लिए यह सब एक शाक से कम नहीं था, लेकिन मुईज़ कमाल और उसके घर वालों ने उसे बहुत अच्छी तरह ट्रीट किया ।
उसमें मां बाप की छोड़ी हुई जायदाद फिर मुईज कमाल का बिजनिस, वह शहर के अमीर तरीन लोग थे फिर खुदा ने उसे एक खूबसूरत सा बेटा भी दिया । वह खुद को खुश किस्मत समझती थी।
असफंद यार से उसने मुहब्बत की थी कभी कभार वह याद बनकर उसके दिल में चुटकियां लेता था, जिसे वह हमेशा भुलाने की कोशिश करती थी।
एक दम उसकी हंसती बसती जिन्दगी को जेसे किसी की नजर लग गई थी। बिजनिस में दिन ब दिन नुकसान होता जा रहा था।
मुईज़ कमाल ने बहुत कोशिश की, लेकिन बेकार, दो साल में ही उन्हें अपनी सारी जायदाद से हाथ धोना पड़ा । बैंक से इतना लोन लिया कि वापस न करने पर बैंक ने उनकी सारी जायदाद जब्त कर ली ।
वह आसमान से जमीन पर आन गिरे थे । उनका आलीशान मकान भी नीलाम हो गया था। यह किराए के मकान में रहने लगे ।
उस पल इशा को असफंद का कच्चा, मगर हवादार घर अपने घर से ज्याद अच्छा लगा। अब तो कदम कदम पर उसे असफंद याद आता था, जिसे उसने और उसके घर वालों ने ग़रीबी की वजह से ठुकरा दिया था ओर आज वह खुद को कोडी कोडी की मोहताज समझ रहीं थी।
मुईज कमाल ज्यादातर घर से बाहर काम की तलाश में रहता था। घर आता तो ज़्यादातर खामोश झुझलाता था, वह भी अब खास काम और जरूरत के लिए ही उससे बात करती थी। एक दिन तो हद ही हो गई।
इशा ने उसे कहा कि उसे मार्केट से अपनी जरूरत की कुछ चीजें लेनी हैं यह बात सुनकर वह भड़क उठा । “मैं डाके डालूं क्या? जब तुम्हें पता है कि फजूल खर्ची के लिए मेरे पास पैसा नहीं है तो फिर तुम क्यों तंग करती हो ।”
“मुईज! अब जो जरूरत है वह तो पूरी करनी है और जरूरत पूरी करने के लिए मुझे आपसे ही मांगना है।
“तुम्हारी वजह से आज में आसमान से जमीन पर आ गया हूं, मनहूस हो, तुमने मुझे भी बर्बाद कर दिया मैं तो उस दिन को कोसता हूं जब तुम से शादी की थी।” और भी वह जाने क्या क्या कह रहा था।
नन्हें मुन्ने हादी की आवाज सुनकर वह कमरे में चली गई । हादी के साथ वह भी खूब रोई थी। मुहब्बत और रिश्ते ऐसे भी बदलते हैं ।
हादी का दूध और बहुत सारी चीजें जो खत्म हो गई थीं । वह खुद तो जैसे गुजार कर लेती लेकिन हादी तो बच्चा था, इसलिए उसने हादी को उठाया घर में ताला लगाया और अपने
जेवरों में से बचने वाले इयररिंग बेचने के लिए सुनार के पास चली गई। वह सोच रही थी कि वह जाब करेगी अपने और अपने बच्चे के लिए । जिन्दगी तो गुजारनी ही थी अब जैसे भी गुजरे।
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NIce
ReplyDeleteYe sirf 3 page ki h Kya iska end pura nhi laga
ReplyDeletePlzz remaining part upload karti ye nice story
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