कहाँ नाज़िल हुई: | मक्का |
आयतें: | 3 verses |
पारा: | 30 |
नाम रखने का कारण
“हमने तुम्हें कौसर (अल-कौसर) प्रदान कर दिया” के शब्द ‘अल-कौसर’ को इसका नाम दिया गया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नुबूवत के आरम्भिक काल में जब अल्लाह के नबी (सल्ल0) अत्यन्त कठिनाइयों से गुज़र रहे थे और दूर तक कहीं सफलता के चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे थे, उस समय आप को सांत्वना देने और आप को हिम्मत बँधाने के लिए सर्वोच्च अल्लाह ने अनेक आयतें अवतरित कीं।
ऐसी ही परिस्थितियाँ थीं जिसमें सूरह ‘कौसर’ अवतरति कर के अल्लाह के नबी (सल्ल0) को सांत्वना दी और आप के विरोधियों के तबाह और विनष्ट होने की भविष्यवाणी भी की।
कुरैश के काफिर कहते थे कि मुहम्मद (सल्ल0) सम्पूर्ण जाति से कट गए हैं और उनकी हैसियत एक अकेले और निस्सहाय व्यक्ति की-सी हो गई है। पर सूरह कौसर अवतरित की गई।
अल्लाह ने आप को इस अत्यन्त संक्षिप्त सूरह के एक वाक्य में वह शुभ सूचना दी जिससे बड़ी शुभ सूचना संसार में किसी मनुष्य को कभी नहीं दी गई और साथ-साथ यह फैसला भी सुना दिया कि आप का विरोध करने वालों ही की जड़ कट जाएगी।
सूरह कौसर (108) हिंदी में
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।
- (1) (ऐ नबी) हम ने तुम्हें कौसर प्रदान कर दिया।
- (2) अतः तुम अपने रब ही के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो।
- (3) तुम्हारा दुश्मन ही जड़ कटा है।