सूरह रहमान (55) हिंदी में | Ar-Rahman in Hindi

सूरह रहमान “Ar-Rahman”

कहाँ नाज़िल हुई:मदीना
आयतें:78 verses
पारा:27

नाम रखने का कारण

पहले ही शब्द को इस सूरह का नाम दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि यह वह सूरह है जो अर-रहमान (कृपाशील) शब्द से आरम्भ होती है।

फिर भी यह नाम सूरह के विषय से भी गहरा सम्पर्क रखता है क्योंकि इसमें आरम्भ से अन्त तक अल्लाह की दयालुता के गुण-सूचक चिन्हों और परिणामों का उल्लेख किया गया है।

अवतरणकाल

टीकाकार विद्वान् साधारणतः इस सूरह को मक्की घोषित करते हैं। यद्यपि कुछ उल्लेखों में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.), इकरमा (रज़ि) और कतादा (रजि.) का यह कथन उद्धृत है कि यह सूरह मदनी है, किन्तु एक तो इन्हीं महानुभावों से कुछ दूसरे उल्लेखों में इसके विपरीत भी उद्धृत है।

दूसरे इसका विषय मदनी सूरतों की अपेक्षा मक्की सूरतों के अधिक अनुरूप है, बल्कि अपने विषय की दृष्टि से यह मक्का के भी आरम्भिक काल की होती है। और इसके अतिरिक्त तदाधिक विश्वस्त उल्लेखों से इस बात का प्रमाण मिलता हैं यह मक्का मुअज्ज़मा में ही हिजरत से कई वर्ष पूर्व अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ता

कुरआन मजीद की एकमात्र यही सूरह है जिसमें मानव के साथ धरती के दूसरे स्वतंत्र प्राणी जिन्नों को भी प्रत्यक्षतः सम्बोधित किया गया है।

यद्यपि पवित्र कुरआन में विभिन्न स्थानों पर विवरण मौजूद हैं जिनसे मालूम होता है कि मनुष्यों की तरह जिन्न भी एक स्वतंत्र और उत्तरदायी प्राणी हैं और उनमें भी मनुष्यों ही की तरह काफिर और ईमानवाले और आज्ञाकारी और अवज्ञाकारी पाए जाते हैं।

उनमें भी ऐसे गिरोह मौजूद हैं जो नबियों (अलै.) और आसमानी किताबों (ईश्वरीय ग्रंथों) पर ईमान लाए हैं, लेकिन यह सूरह निश्चित रूप से इस बात को स्पष्ट करती है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) और कुरआन मजीद का आह्वान जिन्न और मानव दोनों के लिए है और नबी (सल्ल.) की पैग़म्बरी केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। सूरह उन्हीं को प्राप्त है।

अल्लाह के रसूल (पैग़म्बर) उन्हीं में से आए हैं। और ईश्वरीय ग्रंथ उन्हीं के आर में तो सम्बोधन का रुख मानवों की तरफ ही है, क्योंकि धरती में आधिपत्य की भाषाओं में अवतरित किए गए हैं।

लेकिन आगे चलकर आयत 13 से मनुष्य और जिन्न दोनों को समान रूप से सम्बोधित किया गया है और एक आमंत्रण दोनों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।

सूरह की वार्ताएँ छोटे-छोटे वाक्यों में एक विशिष्ट क्रम से प्रस्तुत हुई हैं :

आयत 1-4 तक इस विषय का वर्णन किया गया है कि इस कुरआन की शिक्षा अल्लाह की ओर से है और यह ठीक उसकी दयालुता को अपेक्षित है कि वह इस शिक्षा से मानव-जाति के मार्गदर्शन का प्रबन्ध करे।

आयत 5-6 में बताया गया है कि जगत् की सम्पूर्ण व्यवस्था अल्लाह के शासन के अन्तर्गत चल रही है और धरती और आकाश की हर चीज़ उसके आदेश के अधीन है।

आयत 7-9 में एक दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह वर्णित है कि अल्लाह ने जगत् की सम्पूर्ण व्यवस्था एवं प्रणाली को ठीक-ठीक संतुलन के साथ न्याय पर स्थापित किया है और इस प्रणाली की प्रकृति यह चाहती है कि इसमें रहने वाले अपने अधिकार-सीमा में भी न्याय ही पर स्थिर हों और संतुलन न बिगाड़ें।

आयत 10-25 तक अल्लाह की सामर्थ्य के चमत्कार और कौशल को वर्णित करने के साथ-साथ उसके प्रसादों और प्रदान की हुई निधियों की ओर संकेत किए गए हैं, जिनसे मनुष्य और जिन्न लाभन्वित हो रहे हैं।

आयत 26-30 तक मनुष्य और जिन्न दोनों को इस सत्य का स्मरण कराया गया है कि इस जगत् में एक ईश्वर के अतिरिक्त कोई अक्षय और अमर नहीं है, और छोटे-से-बड़े तक कोई अस्तित्ववान ऐसा नहीं जो अपने अस्तित्व और अस्तित्वगत आवश्यकताओं के लिए ईश्वर पर आश्रित न हो।

आयत 31-36 तक इन दोनों गिरोहों को सावधान किया गया है कि शीघ्र ही वह समय आने वाला है जब तुमसे कड़ी पूछगछ होगी। इस पूछगछ से बचकर तुम कहीं नहीं जा सकते।

आयत 37-38 में बताया गया है कि यह कड़ी पूछ गछ कयामत के दिन होने वाली है।

आयत 39-45 तक अपराधी मानवों और जिन्नों का परिणाम बताया गया है। और आयत 46 से सूरह के अन्त तक विस्तारपूर्वक उन पारितोषिकों और अनुग्रहदानों का उल्लेख किया गया है जो परलोक में पुण्यवान् मानवों और जिन्नों को प्रदान किए जाएँगे।

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