कहाँ नाज़िल हुई: | मक्का |
आयतें: | 8 verses |
पारा: | 30 |
नाम रखने का कारण
पहली ही आयत के शब्द “अल्-तकासुर” (ज्यादा से ज़्यादा और एक दूसरे से बढ़ कर) को इस सूरह का नाम दिया गया है।
अवतरणकाल
अबू हैयान (रह0) और शौकानी (रह0) कहते हैं कि यह समस्त टीकाकारों की दृष्टि में मक्की है और इमाम सुयूती का कथन है कि सबसे प्रसिद्ध बात यही है कि यह मक्की सूरह है, लेकिन कुछ रिवायतें ऐसी हैं जिनके आधार पर इसे मदनी कहा गया है। हमारी दृष्टि में केवल यही नहीं है कि यह मक्की सूरह है, बल्कि इसकी वार्ता और वर्णन शैली यह बता रही है कि यह मक्का के आरम्भिक काल में अवतरित सूरतों में से है।
विषय और वार्ता
इसमें उन लोगों को उस संसारिकता के बुरे परिणाम से सावधान किया गया है। जिसके कारण वे मरते दम तक अधिकाधिक धन-दौलत, संसारिक लाभ, रस, मान, वैभव और सत्ता प्राप्त करने और उसमें एक-दूसरे से बाज़ी ले जाने और इन्हीं चीज़ों की प्राप्ति पर गर्व करने में लगे रहते हैं।
और इस एक चिन्ता ने उनको इतना अधिक व्यस्त कर रखा है कि उन्हें इससे उच्च चीज़ की ओर ध्यान देने का होश नहीं है।
इसके बुरे परिणाम पर सावधान करने के पश्चात् लोगों को यह बताया गया है कि ये सुख-सामग्रियाँ, जिनको तुम यहाँ निश्चिन्ततापूर्वक समेट रहे हो, यह केवल सुख-सामग्री ही नहीं हैं, अपितु तुम्हारी परीक्षा का साधन भी हैं।
इनमें से हर सुख-सामग्री के विषय में तुम को परलोक में जवाब देना होगा।
सूरह तकासूर (102) हिंदी में
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।
- (1) तुम लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा और एक दूसरे से बढ़ कर दुनिया प्राप्त करने की धुन ने गफलत में डाल रखा है।
- (2) यहाँ तक कि (इसी चिन्ता में) तुम कब्र के किनारे तक पहुंच जाते हो।
- (3) हरगिज़ नहीं, जल्द तुम को मालूम हो जाएगा।
- (4) फिर (सुन लो कि) हरगिज़ नहीं, जल्द ही तुम को मालूम हो जाएगा।
- (5) हरगिज नहीं, अगर तुम विश्वसनीय ज्ञान के रूप में (इस नीति के परिणाम को) जानते होते ( तो तुम्हारी यह नीति न होती)।
- (6) तुम नरक देख कर रहोगे।
- (7) फिर (सुन लो कि) तुम बिल्कुल यक़ीन के साथ उसे देख लोगे।
- (8) फिर ज़रूर उस दिन तुम से इन नेअमतों के बारे में जवाब तलब किया जाएगा।