नाम रखने का कारण
इस सूरह का नाम ही अत-तलाक नहीं है, बल्कि यह इसकी वार्ता का शीर्षक भी है, क्योंकि इसमें तलाक़ ही के नियमों का उल्लेख हुआ है।
अवतरणकाल
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद (रज़ि०) ने स्पष्टतः कहा है और सूरह के विषय के आंतरिक साक्ष्य से भी यही स्पष्ट होता है कि इसका अवतरण अनिवार्यतः सूरह 2 (बकरा) की उन आयतों के पश्चात् हुआ है जिनमें तलाक के नियम-सम्बन्धी आदेश पहली बार दिए गए हैं।
उल्लेखों से मालूम होता है कि जब सूरह बक़रा के आदेशों को समझने में लोग गलतियाँ करने लगे और व्यवहारतः भी उनसे गलतियाँ होने लगीं, तब अल्लाह ने उनके सुधार के लिए ये नियम सम्बन्धी आदेश अवतरित किए।