नमाजे तरावीह के 20 मसाएल - Namaz e Taraweeh Ke 20 Masail

रमज़ानुल मुबारक के आमाल में एक अहम अमल नमाज़े तरावीह है। आहज़रत सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इसके बहुत से फ़ज़ाएल बयान फ़रमाए हैं। और उम्मत को इसकी बेहद तरगीब दी है। एक हदीस में इर्शाद है कि जिसने अल्लाह की रज़ा की ख़ातिर रमजानुल मुबारक की रातों में कयाम किया उसके गुज़श्ता सग़ीरा गुनाह माफ हो जाएंगे। यहां नमाज़े तरावीह के चन्द मसाएल ज़िक्र किए जाते हैं। बाक़ी मसाएल उलमाए किराम  से मालूम कर लिए जाएं।




1. तरावीह की नमाज़ सुन्नतें  मोअकदह है, और इसको बगैर वजह के छोड़ना गुनाह है।


2. चारों इमामों के नज़दीक तरावीह की बीस रकअतें हैं। और सहाबए किराम के ज़माने से मुसलमानों का इसी पर अमल चला आ रहा है।


3. तरावीह में कम से कम एक कुरआन मजीद का ख़त्म करना सुन्नत है। 


4. हाफ़िज़ ऐसा होना चाहिए जो बगैर उजरत के कुरआन मजीद सुनाए और अगर ऐसा हाफ़िज़ न मिल सके तो "अलम तक कैफ़“ के साथ तरावीह पढ़ ली जाए। 


5. तरावीह में कुरआन मजीद देख देख कर पढ़ना सही नहीं, अगर किसी ने ऐसा किया जो नमाज फासिद हो

जाएगी।


6. तरावीह में दो रकअत की नीयत बांधना अफजल है।


7. तरावीह की नमाज की हर चार रकअत के बाद इतनी देर बैठना जितनी देर में चार रकअतें पढ़ी गई थी  मुस्तहब है। लेकिन इतनी देर बैठने में लोगों को तकलीफ हो तो  कम वक्फा कर लिया जाए।


8 . अगर किसी ने इशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ी और बाद में मालूम हुआ कि इशा की नमाज सही नहीं हुई थी तो इशा की नमाज़ के साथ तरावीह भी दोबारा पढ़े।


9. वित्र तरावीह के बाद पढ़ना अफज़ल है, लेकिन अगर पहले पढ़ ली जाए जब भी ठीक है।


10. अगर इशा की नमाज जमाअत के साथ नहीं हुई हो तो तरावीह भी जमाअत के साथ न पढ़ी  जाए क्योंकि तरावीह नमाज़े  ईशा के ताबेअ  है।अलबत्ता  कुछ लोग ईशा की नमाज जमाअत के साथ पढ़कर पढ़ रहे हो,

और कोई व्यक्ति बाद में आए तो वह अपनी इशा को नमाज अलग पढ़ कर तरावीह की जमाअत  में शरीक हो सकता है।


11. जो व्यक्ति मस्जिद में उस वक्त आए जब इशा की नमाज़ हो चुकी हो तो उसको चाहिए कि इशा केफ़र्ज़ पढ़ ले  फिर तरावीह में शामिल हो और उसकी तरावीह की जितनी रकअते रह गई हैं उन्हे  वित्र की नमाज के बाद पढ़े।


12. वित्र की जमाअत  सिर्फ रमजान शरीफ में होती है, रमजान के अलावा जमाअत से नहीं पढ़ी जाती ।


13. किसी सूरत के शुरू में एक बार बिस्मिल्लाह ...... भी ऊंची आवाज से पढ़ लेनी चाहिए क्योंकि यह कुरआन की एक मुस्तकिल  आयत है। अगर इस को न पढ़ा गया तो मुक़्तदीयो का पूरा कुरआने करीम नहीं होगा ।


14. तरावीह की नमाज़ जैसे मर्दों के लिए है ऐसे ही औरतों के लिए है। मगर ज्यादातर औरते इसमें कोताही  और बेधयानी  करती है। यह बहुत बुरी बात है।


15. कुछ मस्जिदों  में औरतों की तरावीह का  इन्तिजाम होता है। मगर इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के नजदीक औरतों का मस्जिद में जाना मकरूह है। उनका घर पर नमाज पढ़ना, कुरआन सुनने से ज्याद अफज़ल है।


16. रमजान शरीफ में मस्जिद में तरावीह की नमाज होना सुन्नते किफाया है। अगर कोई मस्जिद तरावीह की नमाज से खाली रहेगी तो सारे मुहल्ले वाले गुनहगार होंगे।


17. जो लोग किसी उज्  की वजह से रोजा नहीं रखते हों तरावीह की नमाज उनके लिए भी सुन्नत है। यह ख्याल गलत है कि जिसने रोजा रखा वही तरावीह भी पढ़े। तरावीह एक मुस्तकिल सुन्नत है यह रोज़े के ताबेअ नहीं है।


18. अगर मुहल्ले की मस्जिद में कुरआने मजीद का ख़त्म नहीं होता या इमाम कुरआन मजीद गलत पढ़ता हो, तो तरावीह के लिए मुहल्ले की मस्जिद को छोड़कर जाना नाजाएज़ है।


19. 14 साल से कम उम्र के बच्चे को तरावीह की नमाज़ में भी इमाम बनाना ठीक नहीं है।


20. औरतों की जमाअत मकरूह है।

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