बिसमिल्लाह पढ़ने के 20 फायदे / Bismillah Padhne Ke 20 Fayde

1. मुजर्रबात देरबी, मत्बूआ मिस्र, पेज : 4 पर शैख़ अहमद देरबी कबीर फ़रमाते हैं कि बिसमिल्लाह के बाज़ ख़वास में से एक यह है कि अगर कोई मुहर्रम की एक तारीख़ को बिसमिल्ला-हिर्रहमानिरहीम एक वर्क़  (कागज़) पर एक सौ तेरह (113) बार लिखकर अपने पास रखे तो पूरी ज़िंदगी उसको कोई नाख़ुशगवार वाक़िआ पेश न आए।

2. बाज़ सालिहीन से मक़ूल है कि जो शख़्स बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीमा को बारह हज़ार बार पढ़े, और हर एक हज़ार के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़े और नबी करीम सल्ल० पर दुरुद भेजे और उसके साथ हक़ तआला से अपनी हाजत का सवाल करे, फिर दोबारा बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम पढ़े और एक हज़ार के बाद दो रकअत नमाज़ और दुरूद शरीफ पढ़कर तलबे हाजत करे, इसी तरह पढ़ता रहे यहाँ तक कि बारह हज़ार अदद मज्कूर पूरे हो जाएँ।


 पस जो कोई इस पर अमल करेगा, हाजत उसकी जिस तरह की होगी बिइज़्निल्लाह पूरी होगी।


3. जो शख़्स बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम सात सौ छियासी (786) बार लगातार सात दिन जिस काम के वास्ते पढ़ेगा, चाहे नफ़ा हासिल करने के वास्ते हो या मुसीबत को हटाने के वास्ते, या कारोबार के वास्ते हो, इंशाअल्लाह वह मक़्सद पूरा होगा।


4. ख़ज़ीनातुल इसरारुन्नाज़िली में लिखा है कि जो शख़्स रात को सोते वक़्त इक्कीस (21) बार बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर सोए वह तमाम इंसानी, शैतानी शरारतों और जिन, भूत और आग से महफ़ूज़ रहेगा। 


5. मिर्गी वाले के कान में इक्तालीस (41) मर्तबा बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर दम करने से वह होश में आ जाता है।


6. दर्द या जादू वग़ैरह पर मुतवातिर (लगातार) सात दिन सौ (100) सौ (100) मर्तबा बिसमिल्ला-हिर्रहमा निर्रहीम पढ़ने से दर्द और जादू दूर हो जाता है।


7. इतवार की सुबह सूरज निकलते ही तीन सौ तेरह (313) मर्तबा बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम और सौ (100) दफ़ा दुरूद शरीफ़ पढ़ने से ग़ैबी रिज़्क का दरवाज़ा खुल जाता है।


8. इक्कीस (21) मर्तबा बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम लिखकर बच्चों के गले में डालने से बच्चा तमाम आफ़ात व बलाओं से मामून रहता है।


9. बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम इकसठ (61) बार किसी काग़ज़ पर लिखी जाए और जिस औरत की औलाद ज़िंदा न रहती हो वह उसको अपने पास बतौर तावीज़ रखे। इंशाअल्लाह उसकी औलाद जिंदा रहेगी, यह अम्र मुजर्रब और आज़मूदा है। 


10. अगर कोई शख़्स  बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम एक सौ एक (101) बार लिखकर अपने खेत में दफ़न करे तो मूजिब सरसब्जी खेत व फ़रावानी ग़ल्ला व हिफ़ाज़त अज़ जुमला आफ़ात व हुसूले बरकत होगा।


11. एक मर्द सालेह ने कहा कि जो कोई बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम छ: सौ पच्चीस (625) बार लिखकर अपने पास रखेगा, अल्लाह तआला उसको हैबते अज़ीम देगा। कोई शख़्स उसको सता न सकेगा। बिइज़्निल्लाह।

  

12. इमाम राजी रह० तफ़्सीर कबीर जल्द अव्वल पेज 168, पर बिसमिल्ला - हिर्रहमानिर्रहीम की बरकात बयान फ़रमाते हुए लिखते हैं। कि फ़िरऔन ने दावए उलूहियत करने से पहले एक मकान बनाया था और उसके बेरूनी दरवाज़े पर बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम लिखी थी।


जब उसने ख़ुदाई दावा किया और हज़रत मूसा अलैहि० ने उसको तब्लीग़ की और उसने क़बूल न की तो हज़रत मूसा अलैहि० ने उसके हक़ में बद्दुआ की, "खुदावंद! तूने इस ख़बीस को किस लिए मोहलत दे रखी है?" वह्य आई कि ऐ मूसा ! यह है तो इस क़ाबिल कि इसको हलाक कर दिया जाए लेकिन इसके दरवाज़े पर बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम लिखी हुई है जिसकी वजह से वह अज़ाब से बचा हुआ है। इसी वजह से फ़िरऔन पर घर में अज़ाब नहीं आया, बल्कि वहां से निकाल कर दरिया में ग़र्क़ कर दिया गया।


सुब्हानल्लाह ! जब एक काफ़िर का घर बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम की वजह से अज़ाब से बच गया तो अगर कोई मुसलमान इसको अपने दिल व दिमाग़ और ज़बान पर लिख ले तो क्यों न वह अज़ाबे इलाही से महफ़ूज़ रहे। 


13. हज़रत मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी रह० तफ़्सीर अज़ीज़ी में लिखते हैं कि मुफ़स्सिरीन ने कहा है कि जब तूफ़ाने नूह ने इस दुनिया को अपने ख़ौफ़नाक अज़ाब के चंगुल में घेर लिया और हज़रत नूह अलैहि० अपनी कश्ती में सवार हुए तो वह भी ख़ौफ़े ग़र्क़ से बहुत हिरासाँ व लरजाँ थे।


 उन्होंने ग़र्क़ से नजात पाने और उस अज़ाबे ख़ुदाबंदी से महफ़ूज़ रहने के लिए “बिसमिल्लाहि मजरीहा व मुरसाहा“ कहा। इस कलिम की बरकत से उनकी कश्ती ग़रक़ाबी से महफ़ूज़ व सालिम रही।


मुफ़स्सिरीन कहते हैं कि जब इस आधे कलिमे की वजह से इतने हैबतनाक तूफ़ान से नजात हासिल हुई तो जो शख़्स अपनी पूरी ज़िंदगी इस पूरे कलिमे यानी बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम से अपने हर काम की इब्तिदा करने का इल्तिज़ाम कर ले वह नजात से क्योंकर महरूम रह सकता है?


14. हजरत सुलैमान अलैहि० ने जब बिल्क़ीस मल्क-ए-यमन को पहला ख़त लिखा तो “इन्नहू मिन सुलैमा-न व इन्नहू बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम" लिखा तो उसकी बरकत से बिल्क़ीस उनके निकाह में आई और उसका पूरा मुल्क हज़रत सुलैमान अलैहि० के क़ब्ज़े में आया। 


15. हज़रत ईसा अलैहि० का एक दफ़ा क़ब्रिस्तान से गुज़र हुआ तो देखा कि एक शख़्स को निहायत शिद्दत के साथ अज़ाब दिया जा रहा है। यह देखकर हज़रत ईसा अलैहि० चन्द क़दम आगे तशरीफ़ ले गए और वुज़ू और नहाकर वापस हुए। 


अब वापसी पर जो उस क़ब्र के पास से गुज़रे तो मुलाहिज़ा  फ़रमाया कि उस कब्र में नूर ही नूर है और वहाँ रहमते इलाही की बारिश हो रही है। आप बहुत हैरान हुए और बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया कि मुझे इसका राज़ बताया जाए? इरशाद हुआ कि रुहुल्लाह ! यह शख़्स  सख़्त गुनाहगार व बदकार था, इस वजह से अज़ाब में गिरफ़्तार था। 


लेकिन इसने अपनी बीवी हामिला छोड़ी थी, उसके यहाँ लड़का पैदा हुआ और आज उसको मक्तब भेजा गया, वहाँ उसको बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम पढ़ाई। मुझे हया आई कि ज़मीन के अंदर उस शख़्स  को अज़ाब दूँ कि जिसका बच्चा ज़मीन पर मेरा नाम ले रहा है।  


16. हज़रत खालिद बिन वलीद रजि० के पास कोई शख़्स ज़हर हलाहल (मुहलिक) का लबरेज़ प्याला लाया और कहा कि अगर आप इस ज़हर को पीकर सहीह सलामत ज़िंदा रहें तो हम जान लेंगे कि आपका मज़हब इस्लाम सच्चा मज़हब है। आपने बिसमिल्ला - हिर्रहमानिर्रहीम पढ़कर वह ज़हर पी लिया और ख़ुदा के फ़ज़्ल से कुछ भी असर न हुआ।


17. कैसरे रूम को बड़ी शिद्दत से दर्द सर हुआ। इलाज मुआलिजा से मायूसी के बाद उसने हज़रत फ़ारूक़े आज़म रजि० की ख़िदमत में लिखा कि मुझे दर्द सर की शिकायत है कुछ इलाज कीजिए। आपने उसके पास एक टोपी भेज दी। जब बादशाह वह टोपी ओढ़ता था। तो दर्द काफ़ूर हो जाता और जब उतार देता था तो दर्दे सर शुरू हो जाता, उसको सख्त ताज्जुब हुआ। उसने टोपी को खुलवा कर देखा तो उसमें एक पर्चा रखा हुआ था जिसमें बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम लिखा हुआ था।



18. नीज़ उलमा ने यह भी लिखा है कि दिन रात के चौबीस घंटे होते हैं। पाँच घंटों के लिए तो पाँच वक्त की नमाजें मुकर्रर हैं और बक़िया उन्नीस (19) घंटों के लिए यह उन्नीस हुरूफ़ अता फरमाए गए ताकि उन्नीस घंटों में हर नशिस्त व बरखास्त, हर हरकत व सुकून और हर काम के वक़्त इन उन्नीस हुरूफ़ के जरिए बरकत व इबादत हासिल हो। यानी इन हुरूफ़ "बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम" की बरकत से यह उन्नीस घंटे भी इबादत में लिखे जाएँ।


19. बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम की बरकात में से एक यह है कि हज़रत सल्ल० ने फ़रमाया कि जब कोई शख़्स बैतुल-ख़ला जाना चाहे तो चाहिए कि वह बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम कहकर जाए ताकि (इसकी वजह से) उसकी शर्मगाह और जिन्नात के दर्मियान पर्दा वाक़ेआ हो जाए। यानी जब कोई शख़्स  बिसमिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम कहकर बैतुल-ख़ला जाता है तो इसका खास्सा यह है कि जिन्नात की नजर उसकी शर्मगाह की तरफ़ नहीं जाती। 


लिहाजा जब इसकी तासीर यह है कि यह आयत इंसान और उसके दुश्मन (जिन्नात) के दर्मियान पर्दा बन जाती है तो उम्मीद है कि यह एक मुसलमान और अज़ाबे उक़बा के दर्मियान भी यकीनन पर्दा बनकर हाइल होगी। (तफ़्सीर अज़ीज़ी)


20. हज़रत बशर हाफ़ी रह० ने एक पर्चे पर बिसमिल्ला - हिर्रहमानिर्रहीम लिखी हुई ज़मीन पर पाई। उसको उठा लिया। उनके पास सिवाए दो दिरहम के और कुछ न था। ख़ुश्बू खरीद कर उस पर्चे को आपने ख़ुश्बू लगाई, उसके सिले में ख़्वाब के अंदर हक सुब्हानहू व तआला की ज़ियारत नसीब हुई और फ़रमाया : "ऐ बशर ! तूने मेरे नाम को खुश्बूदार बनाया, मैं तेरे नाम को दुनिया और आखिरत में ख़ुश्बूदार बनाऊँगा।"

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