दुआ माँगने के आदाब | Dua Mangne Ka Tarika in Hindi

1. दुआ सिर्फ ख़ुदा तआला से माँगनी चाहिए 

दुआ सिर्फ़ ख़ुदा से माँगिए। उसके सिवा कभी किसी को हाजतरवाई के लिए न पुकारिए। इसलिए कि दुआ इबादत का जौहर है, और इबादत का मुस्तहिक़ तनहा ख़ुदा है। कुरआन पाक का इरशाद है 

 उसी को पुकारना बरहक़ है। और ये लोग उसको छोड़कर जिन हस्तियों को पुकारते हैं, उनकी दुआ का कोई जवाब नहीं दे सकते। उनको पुकारना तो ऐसा है जैसे कोई शख़्स अपने दोनों हाथ पानी की तरफ फैलाकर चाहे की पानी (दूर ही से) उसके मुँह में आ पहुँचे, हालांकि पानी उस तक कभी नहीं पहुंच सकता।

बस इसी तरह काफिरों की दुआएँ बेनतीजा भटक रही है। यानी हाजतरवाई और कारसाज़ी के सारे इख़्तियारात ख़ुदा ही के हाथ में हैं। उसके सिवा किसी के पास कोई इख्तियार नहीं। सब उसी के मोहताज है।

उसके सिवा कोई नहीं जो बन्दों की पुकार सुने और दुआओं का जवाब दे। इंसानो! तुम सब अल्लाह के मोहताज हो, अल्लाह ही ग़नी और बेनियाज़ और अच्छी सिफ़ातवाला है। 


नबी करीम सल्ल० का इरशाद है कि ख़ुदा ने फ़रमाया है

1. मेरे बन्दो ! मैंने अपने ऊपर ज़ुल्म हराम कर लिया है तो तुम भी एक-दूसरे पर ज़ुल्म व ज़्यादती को हराम समझो।

2. मेरे बन्दो ! तुममें से हर एक गुमराह है सिवाय उसके जिसको मैं हिदायत दूँ बस तुम मुझ ही से हिदायत तलब करो। मैं हिदायत दूंगा।

3. मेरे बन्दो तुममें से हर एक नंगा है सिवाय उसके जिसको है पहनाऊँ, बस तुम मुझी से लिबास माँगो, मैं तुम्हें पहनाऊँगा।

4. मेरे बन्दो तुम रात में भी गुनाह करते हो और दिन में भी, और मैं सारे गुनाह माफ़ कर दूंगा। 

5. और आप सल्ल० ने यह भी इरशाद फ़रमाया है कि "आदमी को अपनी सारी हाजतें ख़ुदा ही से माँगनी चाहिएँ । यहाँ तक कि अगर जूती का तसमा टूट जाए तो ख़ुदा ही से माँगे और अगर नमक की ज़रूरत हो तो वह भी उसी से माँगे।"

6. मतलब यह है कि इंसान को अपनी छोटी से छोटी ज़रूरत के लिए ख़ुदा ही की तरफ़ मुतवज्जेह होना चाहिए। उसके सिवा न कोई  दुआओं का सुनने वाला है और न कोई मुरादें पूरी करनेवाला है।

2. नाजाइज़ और नामुनासिब बातों की दुआ न माँगो

ख़ुदा से वही कुछ माँगिये जो हलाल और तय्यब हो,नाजाइज़ मक़ासिद और गुनाह के कामों के लिए ख़ुदा के हुज़ूर हाथ फैलाना इंतिहाई दर्जे की बेअदबी, बेहयाई और गुस्ताख़ी है हराम और नाजाइज़ मुरादों के पूरा होने के लिए ख़ुदा से दुआएँ करना और मन्नतें मानना दीन के साथ बदतरीन किस्म का मज़ाक़ है। 

इसी तरह उन बातों के लिए भी दुआ न माँगिए जो ख़ुदा ने अज़ली तौर पर तै फ़रमा दी हैं और जिनमें तब्दीली नहीं हो सकती। मसलन कोई पस्ताक़द इंसान अपने क़द के दराज़ होने की दुआ करे, या कोई ग़ैर मामूली दराज़क़द इंसान क़द के पस्त होने की दुआ करे, या कोई दुआ करे कि में हमेशा जवान रहूँ और कभी बुढ़ापा न आए, वगैरह । क़ुरआन का इरशाद है : 

“और हर इबादत में अपना रुख ठीक उसी तरफ़ रखो, और उसी को पुकारो उसके लिए अपनी इताअत को ख़ालिस करते हुए।"

ख़ुदा के हुज़ूर अपनी जरूरतें रखने वाला नाफ़रमानी की राह पर चलते हुए नाजाइज़ मुरादों के लिए दुआएँ न माँगे, बल्कि अच्छा किरदार और पाकीज़ा ज़ज्बात पेश करते हुए नेक मुरादों के लिए ख़ुदा के हुज़ूर अपनी दरख़्वास्त रखे।


3. दुआ इख़्लास और यक़ीन के साथ माँगनी चाहिए

दुआ गहरे इख़्लास और पाकीज़ा नीयत से माँगिए और इस यक़ीन के साथ माँगिए कि जिस ख़ुदा से आप माँग रहे हैं, वह आपके हालात का पूरा-पूरा यक़ीनी इल्म रखता है और आप पर इंतिहाई  मेहरबान भी है, और वही है जो अपने बन्दों की पुकार सुनता और उनकी दुआएँ क़ुबूल करता है। नमूद व नुमाइश, रियाकारी और शिर्क के हर शाएबे से अपनी दुआओं को बेआमेज़ रखिए। कुरआन में है :

                       "अल्लाह को पुकारो उसके लिए अपनी इताअत को खालिस करते हुए" 

"और ऐ रसूल ! जब आपसे मेरे बन्दे मेरे मुतल्लिक़ पूछें तो उन्हें बता दीजिए कि मैं उनसे करीब ही हूँ। पुकारने वाला जब मुझे पुकारता है तो में उसकी दुआ को कबूल करता हूँ, लिहाज़ उन्हें मेरी दावत क़बूल करनी चाहिए और मुझ पर ईमान लाना चाहिए ताकि वे राहे-रास्त पर चलें (सूरा बकरा, आयत 186)

4. दुआ पूरी तवज्जोह से मांगनी चाहिए

दुआ पूरी तवज्जोह, यकसूई और हुज़ूरे क़ल्ब से माँगिए और ख़ुदा से अच्छी उम्मीद रखिए अपने गुनाहों के अंबार पर निगाह रखने के ख़ुदा के ख़ुदा के बेपायां अफ़ू व करम और बेहदो-हिसाब, जूद व सख़ा पर नज़र रखिए उस शख़्स की दुआ दरहक़ीक़त दुआ ही नहीं है जो ग़ाफ़ील और लापरवा हो और ला उबालोपन के साथ महज़ नोके ज़बान से कुछ अल्फ़ाज़ बेदिली के साथ अदा कर रहा हो और ख़ुदा से खुशगुमान न हो हदीस में है

"अपनी दुआओं के क़बूल होने का यक़ीन रखते हुए ( हुज़ूरे क़ल्ब से) दुआ कीजिए ख़ुदा ऐसी दुआ को क़बूल नहीं करता जो ग़ाफ़िल और बेपरवा दिल से निकली हो।" 

5. दुआ इंतिहाई आजिज़ी और खुशूअ के साथ माँगनी चाहिए

दुआ इंतिहाई  आजिज़ी और ख़ुशूअ व ख़ुज़ूअ के साथ माँगिए। ख़ुशुआ व खुज़ूअ से मुराद यह है कि आप का दिल ख़ुदा की हैबत और अज़्मत व जलाल से लरज़ रहा हो और जिस्म की ज़ाहिरी हालत पर भी ख़ुदा का ख़ौफ़ पूरी तरह ज़ाहिर हो, सर और निगाहें झुकी हुई हों, आवाज़ पस्त हो, आज़ा ढीले पड़े हुए हों, आँखें नम हों और तमाम अंदाज व अतवार से मिस्कीनी और बेकसी ज़ाहिर हो रही हो।

नबी करीम सल्ल० ने एक शख़्स  को देखा कि वह नमाज़ के दौरान अपनी दाढ़ी के बालों से खेल रहा है तो आप सल्ल० ने फ़रमाया "अगर उसके दिल में ख़ुशूअ होता तो उसके जिस्म पर भी ख़ुशूअ तारी होता।"

दरअस्त दुआ माँगते वक्त आदमी को उस तसव्वुर से लरज़ना चाहिए कि मैं एक दरमाँदा फ़क़ीर, एक बेनवा मिस्कीन हूँ। अगर ख़ुदा नख़्वास्ता मैं उस दर से ठुकरा दिया गया तो फिर मेरे लिए कहीं कोई ठिकाना नहीं।

मेरे पास अपना कुछ नहीं है, जो कुछ मिला है ख़ुदा ही से मिला है और अगर ख़ुदा न दे तो दुनिया में कोई दूसरा नहीं है जो मुझे कुछ दे सके। ख़ुदा ही हर चीज़ का वारिस है। उसी के पास हर चीज़ का खज़ाना है। बन्दा महज़ फ़क़ीर और आजिज़ है। कुरआन पाक में हिदायत है :

                                        “अपने रब को आजिज़ी और ज़ारी के साथ पुकारो।" 

अबदियत की शान ही यही है कि बन्दा अपने परवरदिगार को निहायत आजिज़ी और मस्कनत के साथ गिड़गिड़ा कर पुकारे।

और उसका दिल व दिमाग जज़्बात व एहसासात और सारे आज़ा उसके हुज़ूर झुके हुए हों, और उसके ज़ाहिर व बातिन की पूरी कैफ़ियत से एहतियाज व फ़रियाद टपक रही हो।

6. दुआ चुपके-चुपके धीमी आवाज़ से माँगनी चाहिए

दुआ चुपके-चुपके धीमी आवाज़ से माँगिए। ख़ुदा के हुज़ूर ज़रूर गिड़गिड़ाइए लेकिन उस गिरया व जारी की नुमाइश हरगिज़ न कीजिए। बन्दे की आजिज़ी और इंकसारी और फ़रियाद सिर्फ़ ख़ुदा के सामने होनी चाहिए।

बिलाशुब्हा बाज़ औक़ात दुआ ज़ोर-ज़ोर से भी कर सकते हैं; लेकिन या तो तंहाई में ऐसा कीजिए या फिर जब इज्तिमाई दुआ करा रहे हों तो उस वक़्त बुलन्द आवाज़ से दुआ कीजिए ताकि दूसरे लोग आमीन कहें। आम हालात में ख़ामोशी के साथ पस्त आवाज़ में दुआ कीजिए और इस बात का पूरा-पूरा एहतिमाम कीजिए कि आपकी गिरया व ज़ारी और फ़रियाद बन्दों को दिखाने के लिए हरगिज़ न हो :

         "और अपने रब को दिल ही दिल में ज़ारी और ख़ौफ़ के साथ याद किया करो और ज़बान से भी            हल्की आवाज़ से सुबह व शाम याद करो। और उन लोगों में से न हो जाओ जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं 

हज़रत जकरिया अलैहि० की शाने बन्दगी की तारीफ़ करते हुए कुरआन में कहा गया है : "इज़ नादा रब्बहू निदाअन ख़फ़िय-या" (मरयम आयत : 3) जब उसने अपने रब को चुपके-चुपके पुकारा।

7. अच्छे कामों की तरफ सबक़त और हराम कामों से परहेज़ कीजिए

नेक मक़ासिद के लिए दुआ करने के साथ-साथ अपनी जिंदगी को ख़ुदा की हिदायत के मुताबिक संवारने और सुधारने की कोशिश कीजिए। गुनाह और हराम से पूरी तरह परहेज कीजिए। हर काम में ख़ुदा को हिदायत का पास व लिहाज़ कीजिए और परहेज़गारी की जिंदगी गुज़ारिए।

हराम खाकर, हराम पीकर, हराम पहनकर और बेबाकी के साथ हराम के माल से अपने जिस्म को पाल कर दुआ करनेवाला यह आरज़ू करे कि मेरी दुआ क़बूल हो, तो यह ज़बरदस्त नादानी और ढिठाई है। दुआ को क़ाबिले क़बूल बनाने के लिए ज़रूरी है कि आदमी क़ौल  व अमल भी दीन की हिदायत के मुताबिक़ हो

नबी करीम सल्ल० ने फ़रमाया, ख़ुदा पाकीज़ा है और वह सिर्फ पाकीज़ा माल ही को क़बूल करता है, और ख़ुदा ने मोमिनों को उसी बात का हुक्म दिया है, जिसका उसने रसूलों को हुक्म दिया है चुनांचे उसने फ़रमाया है :

                                   “ऐ रसूलो! पाकीज़ा रोजी खाओ, और नेक अमल करो।"

                      "ऐ ईमानवालो! जो हलाल और पाकीज़ा चीजें हमने तुमको बख़्शी हैं, वह खाओ।"

फिर आप सल्ल० ने एक ऐसे शख़्स का ज़िक्र किया जो लम्बी मसाफ़त तै करके मुक़द्दस मक़ाम पर हाज़िरी देता है, गुबार में अटा हुआ है, गर्द आलूद है और अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ़ फैलाकर कहता है : “ऐ मेरे रब ऐ मेरे रब" हालांकि उसका खाना हराम है, उसका पीना हराम है, उसका लिबास हराम है और हराम ही से उसके जिस्म की नशो नुमा हुई है। तो ऐसे (बागी और नाफ़रमान) शख़्स  की दुआ क्योंकर क़बूल हो सकती है? 

8. अल्लाह तआला से बराबर दुआ माँगते रहो   

बराबर दुआ करते रहो। ख़ुदा के हुजूर अपनी आजिज़ी और एहतियाज और उबूदियत का इजहार ख़ुद एक इबादत है। ख़ुदा ने ख़ुद दुआ करने का हुक्म दिया है और फ़रमाया है कि बन्दा जब मुझे पुकारता है तो मैं उसकी सुनता हूँ।

दुआ करने से कभी न उकताइए। और इस चक्कर में कभी न पड़िए कि दुआ से तक़्दीर बदलेगी या नहीं, तक़्दीर का बदलना या न बदलना, दुआ का क़बूल करना या न करना ख़ुदा का काम है, जो अलीम व हकीम है बन्दे का काम बहरहाल यह है कि वह एक फ़क़ीर, मोहताज की तरह बराबर उससे  दुआ करता रहे और लम्हा भर के लिए भी ख़ुदा को बेनियाज़ न समझे। नबी करीम सल्ल० ने फ़रमाया, "सबसे बड़ा आजिज़ वह है जो दुआ करने में आजिज़ है।" 

और नबी करीम सल्ल० ने यह भी फ़रमाया है कि  "ख़ुदा के नज़दीक दुआ से ज़्यादा इज़्ज़त व इकराम वाली चीज़ और कोई नहीं है।”

मोमिन की शान ही यह है कि वह रंज व राहत, दुख और सुख, तंगी और ख़ुशहाली, मुसीबत व आराम हर हाल में ख़ुदा ही को पुकारता है, उसी के हुज़ूर अपनी हाजतें रखता है और बराबर उससे खैर की दुआ करता रहता है। नबी करीम सल्ल० का इरशाद है, "जो शख़्स  ख़ुदा से दुआ नहीं करता। ख़ुदा उस पर ग़ज़बनाक होता है।" 

9. दुआ कबूल न हो फिर भी दुआ माँगते रहो

दुआ की क़बूलियत के मामले में ख़ुदा पर पूरा भरोसा रखिए। अगर दुआ की क़बूलियत के असरात जल्द जाहिर न हो रहे हों तो मायूस होकर दुआ छोड़ देने की ग़लती कभी न कीजिए। क़बूलियते दुआ की फ़िक्र में परेशान होने के बजाय सिर्फ दुआ माँगने की फ़िक्र कीजिए। 

हज़रत उमर रज़ि० फरमाते हैं, "मुझे दुआ क़बूल होने की फ़िक्र नहीं है, मुझे सिर्फ दुआ माँगने की फिक्र है। जब मुझे दुआ माँगने की तौफ़ीक़ हो गई तो क़बूलियत भी उसके साथ हासिल हो जाएगी।"

नबी करीम सल्ल० का इरशाद है, "जब कोई मुसलमान ख़ुदा से कुछ माँगने के लिए ख़ुदा की तरफ़ मुँह उठाता है तो ख़ुदा उसका सवाल ज़रूर पूरा कर देता है- या तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है या ख़ुदा उसके लिए उसकी माँगी हुई चीज को आख़िरत के लिए जमा फ़रमा देता है “

क़ियामत के दिन ख़ुदा एक बन्द-ए-मोमिन को अपने हुज़ूर तलब फ़रमाएगा और उसको अपने सामने खड़ा करके पूछेगा, "ऐ मेरे बन्दे मैंने तुझे दुआ करने का हुक्म दिया था और यह वादा किया था कि मैं तेरी दुआ को क़बूल करूंगा तो क्या तूने दुआ माँगी थी?”  वह कहेगा, "परवरदिगार ! मांगी थी।"

फिर ख़ुदा फ़रमाएगा, "तूने मुझसे जो माँगी थी मैंने वह कबूल की, क्या तूने फ़लाँ दिन यह दुआ न की थी की मैं तेरा रंज व ग़म दूर कर दूँ जिसमे तू मुब्तला था और मैंने तुझे उस रंज व ग़म से नजात बख़्शी थी ?" बन्दा कहेगा, "बिल्कुल सच है परवरदिगार “

फिर ख़ुदा फरमाएगा, “वह दुआ तो मैंने क़बूल करके दुनिया ही में तेरी आरजू पूरी कर दी थी और फ़लाँ रोज फिर तूने दूसरे ग़म में होने पर दुआ की कि ख़ुदाया ! इस मुसीबत से नजात दे, मगर तूने उस रंज व ग़म से नजात न पाई और बराबर उसमें मुब्तला रहा।" वह कहेगा,  "बेशक परवरदिगार !"

तो ख़ुदा फ़रमाएगा, "मैंने उस दुआ के बदले जन्नत में तेरे लिए तरह-तरह की नेमतें जमा कर रखी हैं।" और इसी तरह दूसरी हाजतों के बारे में भी दरयाफ़्त करके यही फ़रमाएगा।

फिर नबी करीम सल्ल० ने फ़रमाया, "बन्द-ए-मोमिन की कोई दुआ ऐसी न होगी जिसके बारे में ख़ुदा यह बयान न फ़रमा दे कि यह मैंने दुनिया में क़बूल की और यह तुम्हारी आख़िरत के लिए ज़ख़ीरा करके रखी। उस वक़्त बन्द-ए-मोमिन सोचेगा कि काश ! मेरी कोई दुआ भी दुनिया में क़बूल न होती, इसलिए बन्दे को हरहाल में दुआ माँगते रहना चाहिए।

10. दुआ के वक्त ज़ाहिर व बातिन पाक-साफ़ होना चाहिए 

दुआ माँगते वक़्त ज़ाहिरी आदाब, तहारत, पाकीज़गी का पूरा-पूरा ख्याल रखिए और क़ल्ब को भी नापाक जज़्बात, गन्दे ख़्यालात और बेहूदा मोतक़िदात से पाक रखिए। कुरआन में है :

"बेशक ख़ुदा के महबूब बन्दे वे हैं जो बहुत ज़्यादा तौबा करते हैं और निहायत पाक साफ़ रहते हैं।"

और सूरह मुद्दस्सिर में है :

"और अपने रब की किबरियाई बयान कीजिए और अपने नफ़्स को पाक रखिए।"

11. पहले अपने लिए फिर दूसरों के लिए दुआ कीजिए

दूसरों के लिए भी दुआ कीजिए। लेकिन हमेशा अपनी ज़ात से शुरू कीजिए। पहले अपने लिए माँगिए फिर दूसरों के लिए। कुरआन पाक में हज़रत इबराहीम अलै0 और हज़रत नूह अलै0 की दो दुआएँ नक़ल की गई हैं जिनसे यही सबक़ मिलता है

“ऐ मेरे रब ! मुझे नमाज़ क़ायम करनेवाला बना और मेरी औलाद को भी। परवरदिगार ! मेरी दुआ क़बूल फरमाँ और मेरे वालिदैन और सारे मुसलमानों को उस दिन माफ़ फ़रमा दे जबकि हिसाब क़ायम होगा।"

“मेरे रब ! मेरी मग़फ़िरत फ़रमा, और मेरे माँ-बाप की मग़फ़िरत फ़रमा और उन मोमिनों की मग़फ़िरत फ़रमा जो ईमान लाकर तेरे घर में दाख़िल हुए और सारे ही मोमिन मर्दों और औरतों की मग़फ़िरत फ़रमाँ” 

हज़रत अबी बिन कअब रजि० फ़रमाते हैं, “नबी करीम सल्ल० जब किसी शख़्स  का ज़िक फ़रमाते तो उसके लिए दुआ करते और दुआ अपनी ज़ात से शुरू करते।" 

12. दुआ में तंगनज़री से परहेज़ कीजिए

दुआ में तंगनज़री और ख़ुदग़र्ज़ी  से भी बचिए और ख़ुदा की आम रहमत को महदूद समझने की ग़लती करके उसके फ़ैज़ व बख़्शिश को अपने लिए ख़ास करने की दुआ न कीजिए।

हज़रत अबू हुरैरह. रजि० फ़रमाते हैं कि मस्जिदे नबवी में एक baddu आया। उसने नमाज़ पढ़ी, फिर दुआ माँगी और कहा ऐ ख़ुदा मुझ पर और मुहम्मद सल्ल० पर रहम फ़रमा और हमारे साथ किसी और पर रहम न फ़रमा तो नबी अकरम सल्ल० ने फ़रमाया, “तूने ख़ुदा की वसीअ रहमत को तंग कर दिया।"

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