खजूरों में बरकत

जंगे- ख़नदक्क़ की तैयारियाँ ज़ोर व शोर से जारी थीं। मुसलमानों की जमाअत रसूलुल्लाह सल्ल० के इर्द-गिर्द ख़नदक़ की खुदाई में मशगूल थी।

बहुत-से मुसलमानों के घरों में एक वक़्त की रोटी भी दस्तियाब न थी। फिर भी वह रसूलुल्लाह सल्ल० से बे-इन्तिहा मुहब्बत और शदीद लगाव के सबब आपके हुक्म की तक्मील में लगे रहते थे।

भूक की शिद्दत से निढाल हो जाते तो अपने पेट पर पत्थर बाँधकर ख़नदक़ की खुदाई करते, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा भूख बरदाश्त कर सकें।


यहाँ तक कि रसूले अकरम सल्ल० ने भी अपने पेट पर भूक की वजह से पत्थर 'बाँध रखे थे और ख़नदक़ की खुदाई में सहाबा किराम रजि० के साथ पूरे इनहिमाक के साथ मशगूल थे।

हज़रत अबू तलहा रजि० कहते हैं :

"हमने रसूलुल्लाह सल्ल० से भूख का शिकवा किया और अपने पेट से एक-एक पत्थर बंधा हुआ दिखाया तो रसूलुल्लाह सल्ल० ने अपने पेट से दो पत्थर बंधे हुए हमें दिखाए।"

(जामेअ तिर्मिज़ी, मिश्कातुल मसाबीह, जिल्द 2, पेज 448)

खनदन की खुदाई करनेवाले सहाबा किराम रजि० की तादाद एक हज़ार और वाक़दी की रिवायत के मुताबिक तीन हज़ार बताई गई है।

ख़नदक्क़ की खुदाई के दौरान कई मोजज्ञात रूनुमा हुए। उनमें से एक मोजज्ञा हम यहाँ एक सहाबिया रजि० के हवाले से नकल करते हैं।

हज़रत नोमान बिन बशीर रजि० की बहन का बयान है कि मेरी वालिदा अमरह-बिन्ते-रवाहा रजि० ने मुझे बुलाया और दो मुट्ठी खजूरें देकर कहने लगीं : इन्हें अपने वालिद बशीर और मामूं अब्दुल्लाह बिन रवाहा की ख़िदमत में ले जाओ ताकि वे दोपहर के खाने में कुछ खा लें।

मैं खजूरें लेकर अपने वालिद और मामूं की तलाश में निकली, वे दोनों दीगर सहाबा रज़ि० के साथ खनदक्क़ की खुदाई में मशगूल थे। मुझे उन्हें तलाश करते हुए देखकर रसूले अकरम सल्ल० ने बुलाया और पूछने लगेः तेरे पास क्या है?


मैंने अर्ज किया : "ये चन्द खजूरें हैं जिन्हें देकर मेरी अम्मी ने मेरे अब्बू और मामूं के पास भेजा है ताकि वे दोपहर के खाने में कुछ खा लें।”

रसूले अकरम सल्ल० ने फ़रमाया : "हातीहि" यानी ये खजूरें मुझे देदो ।

मैंने खजूरें रसूलुल्लाह सल्ल० के दोनों हाथों में रख दीं। आप सल्ल० की हथेलियाँ नहीं भरीं। फिर आप सल्ल० के हुक्म से चादर बिछाई गई और आप सल्ल० ने चादर पर खजूरें फैला दीं।

फिर आप सल्ल० ने एक आदमी से फरमाया, "अहले-ख़नदक़ को आवाज़ दो कि वह आकर दोपहर का खाना खा लें।" यह आवाज़ सुनते ही ख़नदक्क़ की खुदाई करने वाले तमाम सहाबा किराम रजि० दस्तरख्वान पर हाज़िर हुए और खजूरें तनावुल फरमाने लगे ।

अहले-ख़नदक़ खजूरें खाते गए और वे बढ़ती गई। सारे अहले-खनदन खाकर वापस हो गए, मगर खजूरें थीं कि कपड़े के किनारे से बाहर गिर रही थीं।

वाज़ेह रहे कि ख़नदक़ के दौरान इस क़िस्म की कई मोजजाना बरकात का जुहूर हुआ।

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